Book Title: Jain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Author(s): Dilip Dhing
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 366
________________ व्यक्तिवादी पूंजीवाद राजसत्तात्मक पूंजीवाद के रूप में बदल गया। राजसत्तात्मक पूंजीवाद में तानाशाही जुड़ने से मौलिक मानवीय स्वतन्त्रताएँ भी छिन गईं। मार्क्स के उत्पादन की गुणवत्ता को सुधारने और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की बातें भी विस्मृत कर दी गई। इनके अलावा मार्क्स का अतिरिक्त मूल्य का सिद्धान्त महज कायिक श्रम को मूल्यांकित करता है और बौद्धिक श्रम व प्रबन्धकीय कौशल की उपेक्षा करता है। पूंजीवाद और साम्यवाद दोनों व्यवस्थाओं में संसार में संघर्ष बढ़ा और अशान्ति घटी। मानव के समग्र कल्याण की दिशा में कोई ठोस कार्य नहीं हुआ। जो अर्थशास्त्र संसार में विकसित हुआ, वह इच्छा, आवश्यकता और मांग पर आधारित रहा। इच्छा का क्षेत्र सबसे व्यापक, आवश्यकता का उससे छोटा और मांग का क्षेत्र उससे भी सीमित है। आचार्य महाप्रज्ञ आगमिक अर्थशास्त्र के सन्दर्भ में आधुनिक अर्थशास्त्र में सुविधा, वासना (आसक्ति या मूर्छा), विलासिता और प्रतिष्ठा को और जोड़ देते हैं। क्यों कि ये तत्व मानव की इच्छा, आवश्यकता और मांग को अत्यधिक प्रभावित करते हैं। विकास की अवधारणा भी इन्हीं तत्वों के इर्द-गिर्द घूमती रही। इसलिए 'अधिक उत्पादन और अधिक उपभोग' जैसी अवधारणाएँ बल पकड़ने लगी। पर्यावरण की क्षति . डॉ. प्रेम सुमन ने सभ्य मानव के आठ महापाप बताये हैं - आवश्यकता से अधिक जनसंख्या में वृद्धि, प्रकृति के सभी क्षेत्रों में प्रदूषण का विस्तार, जीवन के हर क्षेत्र में अति-प्रतियोगिता, अतिभोग के प्रति तीव्र लालसा, जीवन की कोशिकाओं का हास, परम्परा से प्राप्त संस्कृति की अवहेलना, एकान्तवाद एवं दुराग्रह का प्रचार और अणुशस्त्रों का अन्धा निर्माण / तृष्णा और क्रूरता इन पापों के मूल करण हैं। अधिकाधिक उत्पादन में पर्यावरण की चिन्ता किसी ने नहीं की। जब स्थिति बद से बदतर होने लगी तो 20वीं शताब्दी के सत्तर के दशक में विश्व का ध्यान इस ओर गया। संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वावधान में जून 1972 में स्टॉकहोम (स्वीडन) में स्टॉकहोम पर्यावरण और विकास सम्मेलन हुआ। तब तक मानव की लालसाएँ बहुत बढ़ चुकी थी। प्रकृति और संस्कृति के क्षरण को भारी कीमत पर जो विकास किया जा रहा था, उस पर एकाएक अंकुश लगाने में राजनीतिक प्रयास अधिक कारगर नहीं हुए। 3 और 4 दिसम्बर, 1984 की रात्रि को (337)

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