Book Title: Jain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Author(s): Dilip Dhing
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 402
________________ की उपयोगिता असन्दिग्ध है। अर्थशास्त्रीय नियमों, सूत्रों और मानकों को लागू करने में अनेकान्तिक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। कुशल प्रबन्धन, वैचारिक सहिष्णुता और सामाजिक एकता के लिए अनेकान्त आज सबका मार्गदर्शन कर रहा है। यह अहिंसा का वैचारिक पक्ष है। अहिंसा सभी सिद्धान्तों का केन्द्रीय बिन्दु है। आगमों के सन्दर्भ में अहिंसा की चर्चा के अनेकानेक आयाम हैं। शोध-प्रबन्ध के पाँचवें अध्याय के पाँचवें परिच्छेद में प्राणी-रक्षा और शाकाहार का अर्थशास्त्रीय अध्ययन किया गया है। मांसाहार की बेतहाशा बढ़ती प्रवृत्ति और बूचड़खानों की रक्त-रंजित आर्थिको से संसार अनेक संकटों से घिरा हुआ है। शाकाहार आरोग्यदायक और पर्यावरण का मित्र है। धरती पर छाई जल-संकट और भुखमरी की समस्याओं को शाकाहार अपना कर दूर किया जा सकता है। युद्ध और आतंक की समाप्ति में भी शाकाहार एक कारगर उपाय है। यान्त्रिक बूचड़खानों ने तो हमारे अर्थ-तन्त्र को तार-तार कर दिया है। आत्म-संयम और परिवार-नियोजन शोध-प्रबन्ध के पाँचवें अध्याय के छठे परिच्छेद में संयम की चर्चा है। संयम की कई दृष्टियों से चर्चा की गई। भगवान महावीर महत्व की बात कहते हैं कि जो चीजें निर्जीव हैं, उनके उपयोग में भी संयम और विवेक होना चाहिये। इसके बाद आत्म-संयम (ब्रह्मचर्य) और जनसंख्या के सिद्धान्त का विवेचन है कि किस प्रकार जनसंख्या-नियन्त्रण और परिवार नियोजन के लिए आत्म-संयम एक निरापद उपाय के रूप में भटकती मानवता को नई राह दिखाता है। ब्रह्मचर्य समाज में सदाचार की स्थापना करता है। स्त्री पुरुषों को वह अनेक परेशानियों से बचाता है। अर्थशास्त्र में जिसे मानव-संसाधन कहा जाता है, सदाचार से वह समर्थ * और बलशाली होता है। स्त्री-स्वतन्त्रता और स्त्री-पुरुष समानता में भी ब्रह्मचर्य की अनूठी भूमिका है। अपरिग्रह का अर्थशास्त्र शोध प्रबन्ध के अन्तिम छठे अध्याय में आगमिक और आधुनिक अर्थव्यवस्था का तुलनात्मक मूल्यांकन किया गया है। साथ ही जैन परम्परा की दृष्टि से मध्यकालीन आर्थिक-सामाजिक विचारों और विचारकों पर चर्चा की गई है। प्रथम परिच्छेद में भगवान महावीर के अर्थशास्त्रीय व्यक्तित्व में उनके जीवन (373)

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