Book Title: Jain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Author(s): Dilip Dhing
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 367
________________ हुई भोपाल गैस दुर्घटना में 4000 से अधिक लोग आधिकारिक तौर पर मारे गये और लाखों लोग रोगग्रस्त हो गये। दुनिया का ध्यान फिर इस अन्धाधुन्ध विकास की ओर गया। भारत में भी पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम-1986 बना / संसार के हर क्षेत्र में पर्यावरण पर ध्यान दिया जाने लगा। परन्तु मानव अपनी भोगवादी वृत्ति और कई प्रकार के दुराग्रहों के कारण अहिंसा और संयम की निरापद-उत्कृष्ट जीवन शैली को सम्यक रूप से अपनाने में परेशानी अनुभव करता है। उसकी यह परेशानी, संसार की कई परेशानियों का कारण बनी हुई है। भ. महावीर और महात्मा गांधी माहात्मा गांधी अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि उनके परिवार का जैन धर्म से दीर्घ सम्बन्ध रहा था। जैन मुनियों का उनके परिवार में बहुत सम्मान था। जैन मुनि श्री बेचर स्वामी उनके परिवार के सलाहकार थे। विद्यार्थी जीवन में विदेश जाने से पूर्व उन्होंने बेचर स्वामी से ही मद्यपान, मांसाहार और अनाचार सेवन के निषेध की प्रतिज्ञाएँ की थी, जिनकी बदौलत गांधीजी जीवन में अनेक समस्याओं से बचे। श्रीमद् राजचन्द्र तो उनके लिए गुरु-तुल्य ही थे। गांधीजी ने कहा कि यूरोप के तत्वज्ञानियों में मैं टॉल्सटॉय को पहली श्रेणी और रस्किन को दूसरी श्रेणी का विद्वान समझता हूँ; पर श्रीमद् राजचन्द्र भाई का अनुभव इनसे भी बढ़ा-चढ़ा था। मेरे जीवन पर मुख्यतः श्रीमद् राजचन्द्र की छाप पड़ी है। टॉल्सटॉय और रस्किन की अपेक्षा भी श्रीमद् राजचन्द्र ने मुझ पर गहरा प्रभाव डाला है। श्रीमद् राजचन्द्र से प्राप्त जैन धर्म और दर्शन सम्बन्धी अनेक पुस्तकों का अध्ययन गांधीजी ने किया। दोनों के बीच पत्र-संवाद भी बहुत होता था।' दक्षिण अफ्रीका प्रवास के दौरान भी गांधीजी ने श्रीमद् राजचन्द्र से पुस्तकें मँगवाई थी। उन्होंने जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, हरिभद्रसूरि, हेमचन्द्राचार्य, अमृतचन्द्रसूरि प्रभृति आचार्यों के विशेषावश्यक भाष्य, पुरुषार्थसिद्ध्युपाय आदि ग्रन्थ पढ़े थे, ऐसा अनेक सन्दर्भो से स्पष्ट होता है। श्रीमद् राजचन्द्र ने उन्हें अन्य जैन ग्रन्थों के अलावा उत्तराध्ययनसूत्र भी दिया था। उत्तराध्ययन में जातिवाद का तर्कसंगत ढंग से प्रतिवाद किया गया है। उसमें चाण्डाल कुलोत्पन्न मुनि हरिकेशबल के तपोमय जीवन की महिमा गाई गई है। यह बहुत सम्भव है कि गांधीजी ने मुनि हरिकेशबल के नाम और व्यक्तित्व से प्रभावित और प्रेरित होकर "हरिजन' शब्द प्रयोग किया। महात्मा (338)

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