Book Title: Jain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Author(s): Dilip Dhing
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 389
________________ उपसंहार जैन आगम ग्रन्थों में प्रतिपादित आर्थिक चिन्तन के अन्तर्गत कई दृष्टियों से विचार किया गया है। इसमें तीन दृष्टियाँ मुख्य रही हैं - आगम साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन, आगमिक सिद्धान्तों व आचार-दर्शनों का अर्थशास्त्रीय मूल्यांकन और वर्तमान परिप्रेक्ष्य में आगमिक अर्थ-तन्त्र और जैनाचार का विवेचन। यह सारा वृत्तान्त जितना रोचक है, उससे कई गुना अधिक मार्गदर्शक है। एक के बाद एक अनेक नये आयाम हमारे समक्ष प्रकट होते चले जाते हैं। जो वर्तमान मानव और विश्व के अनेक अनुत्तरित प्रश्नों का उत्तर देते हैं और अनेक अनसुलझी समस्याओं का समाधान करते हैं। आगम-साहित्य का महत्त्व जैन आगम ग्रन्थ विश्व साहित्य की अनमोल निधि है। शताब्दियाँ बीत जाने पर भी : आगम-साहित्य का महत्व न सिर्फ कायम है, अपितु वह निरन्तर बढ़ता जा रहा है। आगमों का महत्व मुख्यतः तीन कारणों से बढ़ रहा है - . - 1. वैज्ञानिक अनुसंधान : ज्यों-ज्यों विज्ञान और तकनीक का विकास होता गया आगम-साहित्य का महत्व बढ़ता गया। कितने ही उपयोगी तथ्य, जिन्हें प्रायः नकार दिया जाता था, अब उन्हें बहुत आदर के साथ स्वीकार किया जा रहा है। ऐसे तथ्य दार्शनिक, तत्व-ज्ञान सम्बन्धी और जीवन शैली से जुड़े हुए हैं। अपने मौलिक दर्शन, व्यावहारिक सिद्धान्तों, स्व-पर हितकारी जीवन शैली और आडम्बरमुक्त उपासना-पद्धतियों की वजह से जैन धर्म आज विश्व में एक सर्वाधिक वैज्ञानिक धर्म के रूप में प्रतिष्ठित है। जो बातें विज्ञानियों द्वारा आज कही जा रही है, आगम-साहित्य में उनके स्पष्ट निर्देश मिलते हैं और जैन परम्परा में सदियों से उनका अनुपालन होता रहा है। एक उदाहरण इसके लिए पर्याप्त है। दो दशक पूर्व राजस्थान में नारू-बाला रोग बहुत फैल गया था। एक विशेष कृमि से होने वाले इस रोग से मरीज को असह्य पीड़ा से गुजरना पड़ता था। इससे कितने ही रोगियों को अपनी जान भी गँवानी पड़ी। शासन की ओर से रोग और रोगियों के बारे में सांख्यिकीय आँकड़े जुटाये गये। एक आश्चर्यजनक तथ्य सामने आया कि जैन समाज में नारू-बाला रोग के (360)

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