Book Title: Jain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Author(s): Dilip Dhing
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 390
________________ मरीज नगण्य संख्या में पाये गये। पता चला कि जैनी पानी छान कर पीते हैं और तप आदि की विशेष परिस्थितियों में छानने के अलावा उसे उबाल कर भी पीते हैं। यह रोग जिस कृमि से होता था, वह अनछने पानी के माध्यम से मानव शरीर में पहुँच जाती थी। तब जाकर सरकार की ओर से यह धुआँधार प्रचार किया गया कि पानी छान कर पिया जाये। स्मरण रहें, आर्थिक उन्नति सहित जीवन की सभी उन्नतियों का मूल बेहतर स्वास्थ्य है। 2. आगम-अनुसंधान : पिछली अर्द्ध-शताब्दी में आगम-साहित्य और जैनविद्या के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य हुआ है। आगमों के विभिन्न दृष्टियों से अध्ययन, शोध और अनुसंधान से नित नये तथ्य प्रकाश में आये। इन अनुसंधानों के फलस्वरूप जैन धर्म की प्राचीनता, ऐतिहासिकता, मौलिकता आदि के बारे में अनेक भ्रम टूटे। अब यह तथ्य दिन के उजाले की तरह सुस्पष्ट है कि जैन धर्म विश्व का प्राचीनतम धर्म है। इसका अपना स्वतन्त्र और मौलिक दर्शन है। साथ ही यह भी स्पष्ट हुआ कि प्राकृत भी प्राचीनतम बोली और भाषा है। इन सबके अलावा प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति के विषय में भी आगम-साहित्य से ऐसी विपुल उपयोगी जानकारी मिलती हैं, जो अन्यत्र अनुपलब्ध या दुर्लभ है। कम्प्यूटर के आविष्कार में भी जैन आगम आधार बने थे। 3. प्रासंगिकता : बढ़ते भौतिकवाद और बिगड़ते पर्यावरण के साथसाथ संसार को एक के बाद एक अनेक नई समस्याओं से जूझता पड़ रहा है। एक तरफ विकास के आश्चर्यजनक प्रतिमान स्थापित किये गये और किये जा रहे हैं, दूसरी ओर युद्ध, आतंक, हिंसा, हत्या, भ्रष्टाचार, दुराचार, शोषण, भुखमरी जैसी समस्याएँ समाप्त होने का नाम नहीं ले रही है। यह स्थिति विकास की अवधारणा को एकपक्षीय सिद्ध करती है। आगम-ग्रन्थ समस्याविहीन सर्वांगीण विकास की ' राह सुझाते हैं। ऐसे अनेक कारणों से आगम-साहित्य की प्रासंगिकता और उपयोगिता बढ़ती जा रही है। नि:सन्देह, आगे भी यह बढ़ती रहेगी। . जैन आगमों के इसी महत्व के कारण शोध-कार्य के लिए इस विषय का चयन किया। इस शोध-प्रबन्ध के प्रथम अध्याय में प्रमुख जैन आगम-ग्रन्थों का एक विशेष दृष्टि से समीक्षात्मक संक्षिप्त परिचय दिया गया है। जिसमें आगम की परिभाषा, अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य आगमों का परिचय है। अध्याय के दूसरे परिच्छेद में मूल-सूत्र, छेद-सूत्र प्रकीर्णक और व्याख्या-साहित्य का परिचय है। (361)

Loading...

Page Navigation
1 ... 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408