Book Title: Jain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Author(s): Dilip Dhing
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 395
________________ विकसित अर्थव्यवस्था की सूचना देते हैं। समय-समय पर अनेक राजाओं ने अपने राज्य की मुद्राओं पर आगम और जैन धर्म से सम्बन्धित प्रतीकों का अंकन करके अहिंसा के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त की। मुद्रा की भाँति माप-तौल के माध्यम भी पर्याप्त थे। जिनमें मान, उन्मान, अवमान, गणिम और प्रतिमान मुख्य हैं। विनिमय के इन माध्यमों की सुगमता से बैंकिंग प्रणाली भी विकसित हो रही थी। व्यापार, वाणिज्य और उद्योगों का संचालन प्रजा-हित के लिए होता रहे तथा शासन के द्वारा उनका नियन्त्रण और नियमन होता रहे, इसके लिए राजस्व और कर-प्रणालियों की विद्यमानता के उल्लेख भी आगम-ग्रन्थों में मिलते हैं। खुशी और उत्सव के अवसरों पर राज्य द्वारा प्रजा को करों से मुक्ति के अनेक उदाहरण मिलते हैं। भगवान महावीर के जन्मोत्सव पर राज्य की ओर से कर माफ कर दिये थे। ज्ञाताधर्मकथांग में करारोपण और कर-मुक्ति के अनेक प्रसंग हैं। करारोपण और अन्य माध्यमों से प्राप्त आय का राज्य लोक हितकारी कार्यों में व्यय करता था। शासन व्यवस्था और सैन्य व्यवस्था पर काफी धन खर्च किया जाता था। आगम सूत्रों में कल्याणकारी राज्य की स्थापना के अनेक निर्देश दिये गये हैं। प्राथमिक उद्योग(Primary Industries) . शोध-प्रबन्ध के तीसरे अध्याय में जैन आगमों में वर्णित आर्थिक जीवन . पर अनेक दृष्टियों से विवेचन किया गया है। कृषि और पशुपालन उस समय के मुख्य धन्धे थे। भारतवर्ष कृषि प्रधान देश है। कृषि अहिंसा की आधारशिला है। मांसाहार से विरत होने और सात्विक भोजन की व्यवस्था के लिए कृषि ही एकमात्र आधार है। जैन ग्रन्थों के अनुसार भगवान ऋषभदेव कृषि के प्रथम उपदेष्टा रहे हैं। कृषि को आर्य-कर्म और अल्पारम्भी माना गया है। ग्रन्थों में प्रायः सभी प्रकार की फसलों और कृषि-उपजों का उल्लेख हैं। मानव का कृषि ज्ञान बहुत उन्नत था। कृषि के साथ की कृषि के सहायक के रूप में पशुपालन किया जाता था। समाज व्यवस्था और प्राथमिक उद्योग के रूप में ये व्यवसाय प्रतिष्ठित थे। भगवान महावीर के मुख्य श्रावक आनन्द आदि भी इन व्यवसायों से जुड़े थे। दुग्ध और दुग्ध-उत्पादों के व्यवसाय के रूप में पशुपालन का महत्व था। साथ ही खेती-बाड़ी, यातायात और सवारी के रूप में भी पशु-पालन की बहुत उपयोगिता थी। पशु परिवार के सदस्यों की भाँति होते थे। आगमों का आचार-दर्शन पशुओं प्रति संवेदना की प्रबल प्रेरणाएँ देता है। वहाँ मांस-प्राप्ति के लिए पशुपालन का (366)

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