________________ शिक्षा और स्वास्थ्य व्यक्ति-शुद्धि के लिए शिक्षा को बहुत बड़ा निमित्त माना गया है। भारत की प्राचीन शिक्षा पद्धति का उद्देश्य था चरित्र का संगठन, व्यक्तित्व का निर्माण, संस्कृति की रक्षा तथा सामाजिक और धार्मिक कर्तव्यों को सम्पन्न करने के लिए उदीयमान पीढ़ी का प्रशिक्षण। परन्तु अब तो ऐसा लगता है कि शिक्षा-प्राप्ति का उद्देश्य अधिकाधिक पैसा कमाने के अलावा कुछ हो ही नहीं। स्वयं शिक्षा एक बहुत बड़ा व्यवसाय बन गई है। शिक्षा का व्यवसायीकरण आधुनिक अर्थशास्त्र की विडम्बना है। आधुनिक अर्थतन्त्र में शिक्षा और स्वास्थ्य के नाम पर भी लाखों-करोड़ों और अरबों-खरबों के वारे-न्यारे हो रहे हैं। साधारण व्यक्ति के लिए अच्छी न्यूनतम शिक्षा भी दूभर हो गई है और चिकित्सा की तो पूछिये ही मत! वह निम्न वर्ग के लिए असम्भव जैसी और मध्यवर्गीय व्यक्ति के लिए कमरतोड़ महंगी है। बड़ी बीमारियों का इलाज तो मध्यवर्गीय व्यक्ति के लिए भी असम्भव जैसा ही लगता है। दवा-उद्योग का निदर्शन इस समय भारतीय दवा बाजार में करीब 60000 दवाइयाँ हैं, जिनमें से सिर्फ 250 दवाइयाँ हमारे काम की है। शेष 59750 दवाइयाँ एकदम बेकार हैं। इन दवाओं को बेचकर ये कम्पनियाँ 800 प्रतिशत तक मुनाफा कमा रही है। एक एक . दवा बाजार में 40 से अधिक नामों से बिक रही है। 90 प्रतिशत ऐसे टॉनिक बनाकर बेचे जा रहे हैं, जो मानव शरीर के लिए बिलकुल अनुपयोगी हैं। भारत के इस दवा उद्योग के करीब 90 प्रतिशत हिस्से पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का कब्जा है। जिनके जरिये करोड़ो रुपया प्रतिवर्ष बाहर चला जाता है। यह सारा कारोबार उन्हीं चिकित्सकों और चिकित्सा-कर्मियों के आसरे फलफूल रहा है, जिन्होंने सेवा के संकल्प के साथ शिक्षा ग्रहण की थी। इन सब तथ्यों के अलावा लगभग पूरा दवा उद्योग एलोपैथी पर अवलम्बित है और एलोपैथी अहिंसक और निरापद नहीं है। उसकी हर दवा के साइड-इफेक्ट्स हैं। एलोपैथी और हिंसा के अर्थतन्त्र का एक ही स्वभाव है। उसमें तुरन्त उपचार तो है, परन्तु आगे अनेक बीमारियों के रास्ते खुल जाते हैं। इसी प्रकार हिंसा पर टिका अर्थतन्त्र तुरन्त सुखद और निरापद प्रतीत होता है। परन्तु कुछ अर्से बाद उसके अभिशाप प्रकट होने लगते हैं। चिकित्साजगत् आधुनिक अर्थतन्त्र के चरित्र का एक उदाहरण मात्र है। आज हर क्षेत्र में (353)