________________ 12. रोजगार : पूंजीवाद में रोजगार प्रस्थिति और रिक्तता पर निर्भर है और साम्यवाद में वह राज्य के हाथों में होता है। अहिंसा का अर्थशास्त्र योग्यता को प्रधानता देता है। 13. विचार प्रक्रिया : पूंजीवाद और साम्यवाद में स्वतन्त्र वैचारिकता का हनन है, जबकि अहिंसा का अर्थशास्त्र अनेकान्त को महत्व देता है। इस प्रकार अहिंसा का अर्थशास्त्र पूंजीवाद और साम्यवाद के दोषों का निराकरण करता है। जैन आगम ग्रन्थों में वर्णित आचार-दर्शन और सिद्धान्त अर्थशास्त्रीय महत्व के निम्न बिन्दुओं पर बल देते हैं - * अहिंसा, शाकाहार, संयम, सादगी और मितव्ययिता। अपरिग्रह, असंग्रह, अनासक्ति और त्याग। * वैचारिक सहिष्णुता और विश्व-शान्ति के लिए अनेकान्त का दृष्टिकोण। * स्वावलम्बन, पुरुषार्थ और कर्त्तव्यपरायणता। * सह-अस्तित्वपूर्ण व्यवस्था। * प्रकृति और संस्कृति का संरक्षण। * सामाजिक व मानवीय एकता। * पारस्परिक अनुग्रह और सहयोग भाव। संसार को बाजार नहीं, परिवार मानना। साधन व साध्य की शुचिता पर बल। * व्यवसाय में प्रमाणिकता और ईमानदारी। विकेन्द्रित अर्थव्यवस्था। * केन्द्र में अर्थ नहीं; मनुष्य होता है। - आज विज्ञान और प्रोद्योगिकी के विकास ने मानव सभ्यता और संस्कृति के अभिनव द्वार खोल दिये हैं। संचार क्रान्ति ने तो मनुष्य की जीवन चर्या और विश्व की व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन कर दिये हैं। उसके पास सुख के साधन तो प्रचुर हैं, परन्तु शान्ति की साधनाएँ कम। वह एक जैविक इकाई है और उसकी मूलभूत नैसर्गिक आवश्यकताएँ हैं। वह एक सामाजिक प्राणी है और उसकी सामाजिक आवश्यकताएँ भी हैं। अर्थशास्त्र मनुष्य की आवश्यकताओं (357)