Book Title: Jain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Author(s): Dilip Dhing
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 383
________________ लोभ-लिप्सा और आपाधापी मची है। आगमिक जीवन शैली निसर्गतः स्वास्थ्य की रक्षक है, इसलिए वह सुख, शान्ति और समृद्धि की हेतु भी है। विकास की विद्रूपताएँ जैन आगम ग्रन्थों में कृषि और आत्म-निर्भर ग्राम-तन्त्र अर्थव्यवस्था के आधार थे। समय के साथ परिस्थितियों में आमूलचूल बदलाव हुए। व्यवस्थाओं में भी क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए या किये गये। समय बदलता है, मूल्य नहीं। मनुष्य ने अपने तात्कालिक स्वार्थ के लिए त्रैकालिक मूल्यों की उपेक्षा करते हुए विकास के ऐसे तरीके ईजाद कर लिये, जिनमें सर्वोदय के सारे सपने चूर-चूर होने लगे।'संन् 1979 से 2004 की 25 वर्षों की अवधि में भारत में कृषि क्षेत्र में लगे लोगों की संख्या 64 प्रतिशत से घट कर 54 प्रतिशत रह गई। देश में करीब 3.6 करोड़ युवा बेरोजगार हैं और करोड़ों जैसे-तैसे अपना काम चला रहे हैं। स्वतन्त्रता के.समय 1947 में देश की जितनी आबादी थी, उतने यानि करीब 35 करोड़ लोग आजादी के करीब छ: दशक बाद भी आज भूखे सोने पर मजबूर है। विश्व में यह संख्या 80 करोड़ बताई जाती है, जिसमें 30 करोड़ बच्चे होते हैं। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रति 3.6 सैकिण्ड में विश्व में एक व्यक्ति की भूख के कारण मौत हो जाती है। जिसमें पाँच वर्ष की उम्र से कम के बच्चों की संख्या अधिक होती है। आज के समय में खाद्यान्न की कमी भूखमरी का मुख्य कारण नहीं है। इसका मुख्य कारण है समाज के एक वर्ग के पास विनिमय अधिकारिता (Entitlement) का अभाव तथा दूसरा कारण है कमजोर व असमान वितरण व्यवस्था। अपरिग्रह के सिद्धान्त में स्वत्त्व (Entitlement) और स्वामित्त्व (Ownership) का विसर्जन तथा संविभाग (सम+विभाग) मुख्य तथ्य हैं, जो भुखमरी, अल्पपोषण और कुपोषण की समस्याओं का मूलोच्छेदन करने में सक्षम हैं। तेज आर्थिक रफ्तार और क्रान्तिकारी तकनीकी विकास के बीच करोड़ों लोगों को पर्याप्त भोजन नहीं मिलना ओर करोड़ों लोगों का बरोजगार रहना या अर्द्ध-रोजगार पर निर्भर रहना सबके लिए चिन्ता और चिन्तन का विषय है। यह केन्द्रित अर्थव्यवस्था का परिणाम है। जन सामान्य की उपेक्षा करके की गई उन्नति अन्ततः अवनति में परिवर्तित हो जाती है। ऐसे संकटापन्न समय में पुनः कृषि और ग्राम विकास पर जोर दिये जाने की जरूरत है। बेतहाशा बढ़ रहे शहरीकरण व औद्योगिकीकरण को रोकने के लिए ग्राम-तन्त्र को मजबूत बनाना और तकनीकी (354)

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