________________ बेरोजगारी, गैर-बराबरी, और उपभोक्तावादी अपसंस्कृति फैलाई है। अब तो विकसित देशों में इनके कारण सामाजिक तनाव बढ़ता जा रहा है। ये कम्पनियाँ रोजमर्रा के . जीवन में काम आने वाली चीजों से लेकर युद्ध के संहारक अस्त्र-शस्त्र तक बनाती है। भूमण्डलीकरण त्याग-तपस्या की महान पावन संस्कृति का नही, भोगउपभोग की अपसंस्कृति का हो रहा है, जो धरती के पर्यावरण और मानव जाति के भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है। भय और हिंसा का अर्थतन्त्र भगवान महावीर ने कहा परिग्रह हिंसा का मूल है। संसार में होने वाले युद्धों के लिए यह बात पूरी तरह लागू होती है। युद्ध कभी राजनीतिक कारणों नहीं, बल्कि आर्थिक कारणों से लड़े जाते हैं। प्रथम विश्व युद्ध के बाद यह बात अधिक स्पष्ट हो जाती है। जब इन कम्पनियों के आर्थिक हित आपस में टकराते हैं. तो उसका परिणाम पूरी मानव जाति को झेलना पड़ता है। द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद अमेरिका की 23 बड़ी कम्पनियों ने नाभिकीय हथियार बनाना शुरु कर दिया। हथियारों के उत्पादन और व्यापार से इन कम्पनियों को अनाप-शनाप मुनाफा हुआ। साथ ही विश्व में वियतनाम, कोरिया, इरान-इराक आदि युद्धों के अलावा आतंकवाद तेजी से फैला। वर्तमान में दुनिया के 195 देशों में से कम से कम 8 देश परमाणु शक्ति सम्पन्न हैं। परमाणु आयुधों का जाखीरा अमेरिका ने अब तक 28 बार दुनिया के विकासशील देशों को अपने आर्थिक व राजनैतिक निर्णय मनवाने के लिए परमाणु-शस्त्र प्रयोग की धमकी दी है और 90 बार परमाणु अप्रसार सन्धि (एन.टी.पी.) का उल्लंघन किया है। अकेले अमेरिका के पास 7000 सामरिक परमाणु हथियार और 1200 कूटनीतिक परमाणु हथियार हैं। इनके अलावा 2700 हथियार निष्क्रिय शस्त्रागार में पड़े हैं। रूस के पास भी सक्रिय रूप से तैनात 8400 परमाणु हथियार हैं तथा 10000 अन्य परमाणु हथियार सुरक्षित पड़े हैं। यूरोप के नाटो सदस्य देशों के पास 200 गुप्त परमाणु हथियार हैं। जो एन.टी.पी. का उल्लंघन है। अन्य देशों के पास भी पर्याप्त परमाणु हथियार हैं। उत्पादन, व्यापार और प्रयोग के अलावा इन हथियारों की तस्करी का एक अलग अर्थतन्त्र है। कुछ देश परमाणु शक्ति के बल पर दुनिया की आर्थिक शक्तियों का एक ध्रुवीकरण करना चाहते हैं। हिंसा और भय के बल पर धनी देशों का सामूहिक (346)