________________ बाजार के आधार बाजारोन्मुख अर्थतन्त्र छ: आधारों पर टिका हुआ है1 - 1. एक जैसा माल (स्टैण्डर्डाइज़ेशन), 2. मनुष्य का एकांगी विकास (स्पेशियलाइज़ेशन), 3. प्रचण्ड व्यवस्था तन्त्र (सिंक्रोनाइज़ेशन), 4. केन्द्रीकृत विकास (कंसेंट्रेशन), 5. अधिकतम कमाई का ध्येय (मेक्झिमाइज़ेशन) और 6. आर्थिक-राजनीतिक सत्ताओं का केन्द्रीकरण (सेण्ट्रलाइज़ेशन)। इन आधारों के तीन प्रमुख सूत्र हैं22- 1. अधिक उत्पादन 2. अधिक उपभोग और 3. अधिक मुनाफा। इससे आगे या पीछे उसे किसी से कोई मतलब नहीं। उसके लिए तीन तरह के लोग महत्वपूर्ण हैं - उत्पादक, व्यापारी और उपभोक्ता। यदि आप इन तीनों में से कोई नहीं हैं तो बाजार की नजरों में आपका कोई मूल्य नहीं है। जैसे बाजार व्यक्ति को उपभोक्ता के रूप में देखना चाहता है, उसी प्रकार राजनेता उसे मतदाता के रूप में देखना चाहता है। जब से अर्थव्यवस्था पर बाजारवाद हावी हुआ है, तब से राजनीति भी व्यवसाय में बदल गई प्रतीत होती है। धर्म और धार्मिक-पारमार्थिक संगठनों पर भी इसका प्रभाव पड़ा है। भूमण्डलीकरण बाजारवाद का वैश्वीकरण अथवा भूमण्डलीकरण होता है। यानि यह देशों की सीमाएँ पार करके अन्तर्राष्ट्रीय रूप ग्रहण करता है। इस दौरान बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अपने व्यावसायिक शोषण का जाल बिछाती है। तीसरी दुनिया के देशों यानि अविकसित, अल्प-विकसित और विकासशील देशों पर इसका कई रूपों फैलाव होता है। प्रेक्षकों का कहना है कि ये कम्पनियाँ स्थानीय, क्षेत्रीय और स्वदेशी व्यापार के हितों को सुनियोजित ढंग से नुकसान पहुँचाती है। केवल व्यापार ही नहीं, स्थानीय सांस्कृतिक स्वरूप को भी ये व्यावसायिक उपक्रम * तहस-नहस कर देते हैं। मानव के चिरकालीन अनुभवों में पके-परखे टिकाऊ जीवन-मूल्यों की अवहेलना का एक उदाहरण पर्याप्त है कि नवजात शिशु के भरपूर पोषण के लिए प्रकृति प्रदत्त माँ के स्तनपान की स्वस्थ नैसर्गिक परम्परा के स्थान पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ 'बेबी फूड' को ले आती हैं। उपनिवेश काल में जो काम पुलिस-फौज के हथियार करते थे, उत्तर-उपनिवेश काल में वही काम विश्व ... बैंक, मुद्रा कोष और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा किया जा रहा है। इन कम्पनियों ने - तीसरी दुनिया के देशों की आर्थिक स्वायत्तता को नष्ट करके व्यापक पैमाने पर रण (345)