Book Title: Jain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Author(s): Dilip Dhing
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 365
________________ मार्क्स साधन-शुचिता की परवाह नहीं करते हैं। उनके समाजवाद (Socialism) का उग्र रूप ही साम्यवाद (Communism) है। साम्यवाद का नारा है 'एक सबके लिए और सब एक के लिए' तथा 'प्रत्येक को क्षमतानुसार कार्य करना है और प्रत्येक को आवश्यकता के अनुसार मिलेगा।' मूल में भूल पूंजीवादी और मार्क्सवादी, दोनों ही विचारधाराएँ भौतिकवाद पर आधारित हैं। इसलिए इन विचारधाराओं में प्रकृति और मनुष्य हाशिये पर चले गये और अर्थ केन्द्रीय तत्व बन गया। इसलिए मानव-कल्याण का कोई स्थाई आदर्श स्थापित होने की बजाय विश्व में शोषण, हिंसा, विषमता, वर्ग-संघर्ष, लूटपात आदि घटनाएँ होती रहीं। मार्क्स का सपना था - समाजवाद। सपना अच्छा था। परन्तु सपने का दर्शन और यथार्थ तक पहुँचने की प्रक्रिया तर्कसंगत नहीं थी। मार्क्स की दो बुनियादी भूलें थीं - 1. मानव के संस्थागत रूप पर ऐकान्तिक बल और उसके मानवीय रूप का सम्पूर्णतः विस्मरण। मार्क्स की व्यवस्था परिवर्तन से व्यक्ति-परिवर्तन की बात सफल नहीं हो पाई। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है स्टालिन का व्यक्तिवादी एकाधिपत्यवाद। जिसने मार्क्स के आदर्शों के बहाने मार्क्स के आदर्शों की अपने जीवन में ही धज्जियाँ उड़ा दी। परिणाम स्वरूप नौकरशाही का एक ऐसा वर्ग तैयार हो गया, जिसका मुख्य कार्य लोकसत्ता को मजबूत बनाकर समाजवाद की स्थापना करना था, परन्तु वह आर्थिक-राजनीतिक सत्ताधीश बनकर जनता का उत्पीड़क और शोषक बन गया। बर्नार्ड शॉ को कहना पड़ा कि सत्ता के उपासक उच्च पदाधिकारियों की सामन्तशाही का दूसरा नाम नौकरशाही है। 2. दूसरी भूल मार्क्स ने, विशेषतः उसके उत्तराधिकारियों ने की वह थी - साधनसाध्य के विवेक की विस्मृति / मार्क्स द्वारा पूंजीवादियों को दी गई ‘संग्राम' की चेतावनी को मार्क्स के उत्तराधिकारियों ने रक्त-क्रान्ति का रूप दे दिया। लेनिन ने कहा - 'राजनीति में कोई नैतिकता नहीं होती, अनिवार्य आवश्यकता ही प्रयोजनीय वस्तु होती है। हमें धोखाधड़ी, विश्वासघात, कानून-भंग, झूठ बोलने आदि के लिए तैयार रहना चाहिये। जिनसे हमारा मतैक्य नहीं है, उनके प्रति हमारी शब्दावली ऐसी ही होनी चाहिये, जिससे जन साधारण के मन में उनके प्रति घृणा और अरुचि पैदा हो।" इस तरह साम्यवाद मूल में ही नकारात्मक दष्टिकोण लेकर आगे बढ़ा। (336)

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