________________ ब्रह्मचर्य गांधी के चुम्बकीय अहिंसक व्यक्तित्व के निर्माण में जैन धर्म दर्शन की सर्वाधिक प्रभावी भूमिका थी। उनकी आत्मकथा में आहार में द्रव्य-मर्यादा, रात्रि-भोजन निषेध और ब्रह्मचर्य का संकल्प जैसे अनेक उत्तम नियम हैं, जो जैनाचार के मुख्य अंग हैं। अणुव्रत और गांधीजी महात्मा गांधी के ग्यारह नियम, जिनका आर्थिक-सामाजिक प्रभाव भी कम नहीं है, और आगम की व्रत व्यवस्था में काफी साम्य है। जिसे निम्न प्रकार से दर्शाया जा सकता है - आगमिक व्रत-व्यवस्था गांधीजी के नियम अहिंसा व्रत अहिंसा व्रत सत्य व्रत सत्य व्रत अचौर्य व्रत अचौर्य व्रत ब्रह्मचर्य अपरिग्रह अपरिग्रह दिशा परिमाण (शरीर श्रम) उपभोग-परिभोग परिमाण अस्वाद अनर्थदण्ड भय-वर्जन सामायिक सर्वधर्म समभाव देशावकाशिक (स्पर्श-भावना) पौषध व्रत (स्वदेशी) अतिथि संविभाग (अन्य व्रतों में इसका समावेश) . भारतीय स्वातन्त्र्य संग्राम में अहिंसा और सत्य का प्रयोग परे संसार के इतिहास में प्रसिद्ध हो गया। गांधीजी के बाद की दुनिया की अनेक लोकतान्त्रिक, आर्थिक और सामाजिक लड़ाइयों में अहिंसा का प्रयोग गांधीजी की देन है। स्वातन्त्र्य प्राप्ति में निष्काम कर्मठता की आवश्यकता होती है। यह निष्काम कर्मठता गांधीजी को जैन धर्म से मिली। उनके सभी व्रत समाज की आर्थिक व्यवस्था से जुड़े हैं। उनकी खादी में अहिंसा, राजकाज और अर्थशास्त्र तीनों का (339)