________________ ये आँकड़ें साफ-साफ बयाँ करते हैं कि हम हिंसक-अर्थतन्त्र के जिस रास्ते पर चल रहे हैं, वहाँ मानवता, पर्यावरण और व्यापार-वाणिज्य सब कुछ तहस-नहस हो रहा है। उन्नतियों के बावजूद मानव अवनतियों की ओर बढ़ रहा है। पशु-पक्षियों की तरह मानवीय मूल्यों की अनेक 'प्रजातियाँ' (विशिष्टताएँ) भी लुप्त हो गई प्रतीत होती हैं। (291)