________________ प्राकृत का यह प्रभाव दूसरी भाषाओं की ओर संक्रमण करने लगा। अनाग्रह और सत्याग्रह जैन मनीषियों की विशिष्टता रही। उन्होंने लोक के व्यापक कल्याण के लिए भाषा का जब जो माध्यम उचित था, उसे अपनाया। भगवान महावीर ने कहा था कि भाषा का आग्रह हमें कठिनाइयों से नहीं उबार सकता। भाषावाद के समक्ष उनकी यह उद्घोषणा बहुत मूल्यवान है। जैन मनीषियो द्वारा संस्कृत और अपभ्रंश के अलावा हिन्दी, कन्नड़, तमिल, मराठी आदि में भी युगनिमार्णकारी साहित्य रचा गया। राजस्थानी, गुजराती, अंग्रेजी और अन्य अनेक भाषाओं के माध्यम से प्राकृत साहित्य में वर्णित जीवन मूल्य समाज का दिशादर्शन करने की ओर अग्रसर है। वस्तुतः, आर्थिक जगत में जिस बाजार आधारित व्यवस्था के वैश्वीकरण की बात की जा रही है; उसकी बजाय विश्व को सांस्कृतिक, नैतिक व मानवीय मूल्यों के वैश्वीकरण की ओर बढ़ना चाहिये। इससे धरती स्वर्ग तुल्य बनेगी और जो समाज-अर्थव्यवस्था स्थापित होगी, वह सर्वोदय का कारण बनेगी। मांग और पूर्ति में सन्तुलन मध्य और मध्योत्तर काल में आबादी का आधिक्य नहीं था। प्रदूषणकारी औद्योगीकीकरण नहीं हुआ था, इसलिए पर्यावरण भी अच्छा था। कृषि आधारित ग्राम्य अर्थव्यवस्था और कृषि, वन व खनिज उत्पादनों पर आधारित उद्योग विकसित थे। प्रचुर उत्पादन था और प्रचुर रोजगार के अवसर उपलब्ध थे। नित्य उपयोग की वस्तुएँ उचित दाम पर सर्वसुलभ थीं। वस्तुओं की मांग और पूर्ति में सन्तुलन था। गरीब तो थे, पर गरीबी नहीं थी। .. (330)