________________ प्राकृत : रोजी-रोटी की भाषा ___ मध्ययुग में विपुल प्राकृत-साहित्य का निर्माण हुआ। प्राकृत-साहित्य का सम्बन्ध जन-जीवन और लोक-जीवन से अधिक रहा। इस साहित्य में मानव मात्र के लिए उच्चतर जीवन-मूल्यों की अभिव्यंजना हुई है। प्राकृत आम आदमी की भाषा होने के साथ-साथ रोजी-रोटी की भाषा थी। व्यवसाय के विस्तार के लिए प्राकृत का सहारा आवश्यक था। व्यवसाय वाणिज्य सम्बन्धी अनेक पुस्तकें प्राकृत में प्राप्त होती हैं। सेठ-साहूकार, सार्थवाह के अलावा निमित्तशास्त्र पर अनेक पुस्तकें मिलती हैं। इससे पता चलता है कि यह लोक-रुचि का विषय भी था और आजीविका का साधन भी। 'जैन साहित्य का बृहद् इतिहास42 के पाँचवें भाग में नाट्य, संगीत, कला, गणित, आय, आयुर्वेद, शिल्पशास्त्र, रत्नशास्त्र, मुद्राशास्त्र, धातु-विज्ञान आदि विषयों के ग्रन्थों का विवरण दिया गया है। ग्रन्थ के प्रकाशकीय में लिखा गया कि पूर्वजों के युग-युगादि में ये सब विषय प्रचलित थे। तत्कालीन समय में ये शिक्षा-दीक्षा के भी साधन थे। निःसन्देह, इन विधाओं/विद्याओं का वाणिज्यिक महत्व था और आज भी है। भगवान महावीर के अनुयायियों ने प्राकृत में सभी विषयों का समावेश करके सभी विषयों और विधाओं को जन-सामान्य तक पहुँचाने का युगान्तरकारी कार्य किया था। भाषा की बाधा से साधारण प्रजा जिस विशेष ज्ञान-विज्ञान, कलाशिल्प और व्यवसाय से अनभिज्ञ थी, वह ज्ञान प्राकृत मनीषियों ने अपने साहित्य के माध्यम से जन-सामान्य तक पहुँचा कर समाज की बड़ी सेवा की। इससे बिना किसी भेदभाव के आर्थिक गतिविधियों में हर वर्ग, वर्ण और जाति की भागीदारी सुनिश्चित हो गई थी। आर्थिक समता के साथ-साथ सामाजिक समता की दिशा में यह एक क्रान्तिकारी घटना थी। .. कथा, चरित और अन्य साहित्य में भी मानव के आर्थिक व्यवहार का विशद् विवरण मिलता है। प्राकृत साहित्य में अति-विशिष्ट से लेकर बिल्कुल साधारण आदमी का वर्णन है। इसलिए इस साहित्य में अर्थ-जगत् की बड़ी-बड़ी साहसिक घटनाएँ.भी हैं और साधारण-से-साधारण काम-धन्धों का आर्थिक महत्व भी है। एक बात और है, प्राकृत आर्ष-भाषा है। उसका सम्बन्ध भगवान महावीर और बुद्ध के कालजयी आप्त-वचनों से है। इसलिए उसमें उत्कृष्ट जीवन मूल्यों का सहज ही समावेश रहा है। इन जीवन-मूल्यों के व्यक्ति और समाज का ... कर्म-क्षेत्र प्रभावित था। अर्थशास्त्र पर नीतिशास्त्र का सुप्रभाव था। (329)