________________ जाता था। उनकी तुलना श्रेणिक, अशोक, सम्प्रति, खारवेल और अमोघवर्ष जैसे सम्राटों से की जाती है। कुमारपालद्वारा अणुव्रतों का ग्रहण : विक्रम संवत् 1216 में कुमारपाल ने अपने गुरु आचार्य हेमचन्द्र के पास प्रजा के समक्ष जैन गृहस्थाचार के अनुसार जीवन जीने की प्रतिज्ञाएँ ग्रहण की। वे प्रतिज्ञाएँ निम्न हैं 38 - 1. राज्य रक्षा के लिए युद्ध के अतिरिक्त आजीवन किसी भी प्राणी की संकल्पपूर्वक हिंसा नहीं करना। 2. कभी भी शिकार नहीं करना, शिकार नहीं खेलना। 3. मांस-मदिरा का सेवन नहीं करना। 4. प्रतिदिन जिनालय में पूजा-अर्चना करना और गुरु हेमचन्द्राचार्य की वन्दना करना। 5. अष्टमी, चतुर्दशी आदि विशिष्ट तिथि-दिनों में सामायिक-पौषध आदि विशिष्ट - उपासना करना। 6. रात्रि भोजन का त्याग। 7. सप्त व्यसनों का पूर्ण त्याग और स्वदार सन्तोष व्रत धारण करना। 8. अभ्यास के लिए अनशन आदि तपों का आचरण करना। हालांकि इन प्रतिज्ञाओं के ग्रहण से पूर्व भी कुमारपाल का जीवन संयम व मर्यादा का जीवन्त रूप था। परन्तु बाद में सार्वजनिक रूप से प्रतिज्ञा ग्रहण करके जनता को अहिंसा और संयम की प्रेरणाएँ दीं। कुमारपाल का राज्य अहिंसा का राज्य था। उनकी आर्थिक और गैर-आर्थिक सभी व्यवस्थाएँ अहिंसा से अनुप्राणित थी। उन्होंने राजपूत-युगीन तथा भारत की सामाजिक राजनीतिक व्यवस्थाओं में अनेक .स्वर्णिम अध्याय जोड़े। जैनों का अवदान लोक-हित की उपेक्षा करके आत्म-हित करना सम्भव नहीं है। आत्म. कल्याण के पथ पर बढ़ने वाले जाने-अनजाने और प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष लोक-हित के निमित्त बनते हैं। भगवान महावीर के अनुयायी सदियों से आत्म-लोक हित की साधना करने वाले रहे हैं। पूर्व मध्य युग के जैन साहित्य में निम्नांकित लोकोपकारी प्रवृत्तियों का उल्लेख मिलता है 39 - (327)