________________ जैसे सभी बुरे कार्य सम्मिलित थे। इन कार्यों के अतिरिक्त जीव-जन्तुओं को बेचकर धन कमाने की भी निन्दा की गई है। कुवलयमालाकहा में कहा गया है कि ऐसा धन्धा करने वाला मरकर दासत्व को प्राप्त होता है। ग्रन्थ में निम्न अनिन्दित साधन बताये गये हैं 23 - 1. देशान्तर गमन (दिसी गमणं) : देशी, विदेशी व अन्तर्देशीय व्यापार। 2. साझेदारी का व्यवसाय (मित्त करणं) 3. राजकीय सेवा (णरवर सेवा) / 4. नाप-तौल में कुशलता (कुसलत्तणं च माणप्पमाणेसु) .. 5. धातुवाद (धाउव्वाओ) : स्वर्णसिद्धि भी इसमें सम्मिलित थी। 6. मन्त्रसाधना (मन्तं) 7. देव-आराधना (देवयाराहणं) 8. कृषि (केसिं) 9. सागर सन्तरण (सायर-तरणं) 10. रोहण पर्वत का खनन (रोहणम्मि खणणं) 11. वाणिज्य (वणिजं) 12. नौकरी आदि विविध प्रकार के उत्तम कार्य (णाणाविहं कम्म) 13. विभिन्न प्रकार की विद्याएँ और शिल्प (वजा सिप्पाइं णेय रूवाइं) 14. खान्यवाद। धनोपार्जन के इन साधनों में मन्त्र-साधना, देव-आराधना और खान्यवाद विशिष्ट हैं। खनन और स्फोट-कर्म इसमें धातुवाद और उत्खनन दो ऐसे अनिन्दित साधन बताये गये हैं. जो गृहस्थाचार के पन्द्रह वर्जित कर्मादानों में स्फोट-कर्म (फोड़ी-कम्मे) के अन्तर्गत परिगणित किये जाते हैं। स्फोट-कर्म के अन्तर्गत आचार्य अभयदेव से लेकर वर्तमान के कई आचार्यों और विद्वानों ने खनन-कर्म को गिना है। आवासीय और व्यावसायिक भवन-निर्माण के अलावा मन्दिर निर्माण, मूर्ति-निर्माण और धर्मस्थलों के निर्माण में भी नींव से शिखर तक इन खनिज उत्पादों का भरपूर उपयोग (322)