________________ होता है। खनन व्यवसायियों का समाज में भारी मान-सम्मान और प्रतिष्ठा है। वे राज-कोष भी भरते हैं और धार्मिक संस्थाओं के कोष भी। जैनाचार्य उद्योतन सूरि खनन और धातुवाद की चर्चा स्फोट-कर्म के अन्तर्गत नहीं कर रहे हैं। स्फोट-कर्म के बारे में सुस्पष्ट दृष्टिकोण की आवश्यकता है। जिसकी चर्चा गृहस्थाचार में की गई है। कुवलयमालाकहा में आर्थिक विकास की जानकारी देने वाले कुछ महत्वपूर्ण तथ्य निम्न है - 1. एशिया के विभिन्न देशों के साथ व्यापारिक और आर्थिक सम्बन्ध थे। 2. बड़े-बड़े व्यापारिक केन्द्र, ग्राम, नगर, मण्डियाँ आदि विकसित थे। 3. जन्मगत वर्ण-व्यवस्था विद्यमान होने के बावजूद जैन परम्परा कर्मगत विभाजन के पक्ष में थी। 4. अधिकांशतः व्यवसाय पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ता था। इससे कुशलता . स्थापित होती थी और रोजगार की समस्या नहीं होती थी। 5. वस्त्रों के 49 प्रकार बताये गये। इससे वस्त्र व्यवसाय की उन्नति का पता / चलता है। . 6. छियालीस प्रकार के अलंकार और आभूषण बताये गये। स्पष्ट है कि * बहुमूल्य धातु और रत्न व्यवसाय भी विकसित अवस्था में था। 7. उन्चालीस प्रकार के शस्त्रास्त्रों के उल्लेख” से शस्त्रास्त्र-निर्माण और व्यापार .' के साथ-साथ सैन्य-सुरक्षा की व्यवस्थाओं की जानकारी मिलती है। - कुवलयमालाकहा से स्पष्ट होता है कि आठवीं सदी में व्यापार और वाणिज्य उन्नति की अवस्था में था। नौवीं शताब्दी में आचार्य जिनसेन रचित ग्रन्थ .. आदिपुराण में तत्कालीन भारतीय समाज और संस्कृति का सजीव चित्रण हुआ है। षट् कर्मों का निरूपण और कुलकर व्यवस्था का विवरण आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से अत्यन्त उपयोगी है। - आगम और आगमोत्तर युग आगम युग में प्राप्त आर्थिक जीवन से भी अधिक स्पष्ट वर्णन आगमोत्तर काल में दिखाई पड़ने के तीन कारण हैं। प्रथम, आगमों का उद्देश्य आर्थिक व्यवस्थाओं का निरूपण नहीं रहा। द्वितीय कारण है काल और अकाल के प्रभाव (323)