________________ से विपुल श्रुत-सम्पदा का नष्ट हो जाना। तृतीय कारण को हम ऐसे समझें - भौतिकी का सामान्य नियम है कि दूर की वस्तु छोटी और अस्पष्ट दिखाई देती है। जैसे सैकड़ों यात्रियों को ले जाने वाला विमान हमें आकाश में चिड़िया जैसा नजर आता है। अपनी पृथ्वी से भी कई गुना बड़े ग्रह और तारे हमें अन्तरिक्ष में बिन्दु जैसे दिखाई पड़ते हैं। भौतिक दूरी की तरह समय की दूरी का भी प्रभाव पड़ता है। आगम के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि आगम-युग का आर्थिक जीवन भी कई तरह से दूसरे काल-खण्डों की तुलना में मौलिक व समृद्ध था। भगवान महावीर के संघ में 1400 साध्वियों के मोक्ष-गमन के अलावा 700 केवल ज्ञानी, 500 मन:पर्यव ज्ञानी, 1300 अवधि ज्ञानी और 900 वैक्रिय लब्धिधारी श्रमण थे। आज के समय में ये अति-विशिष्ट सिद्धियाँ, लब्धियाँ और उपलब्धियाँ अनुपलब्ध है, विलुप्त है। ऐसी विशिष्ट आध्यात्मिक ऊँचाइयों के लिए पर्याप्त शारीरिक बल/सामर्थ्य आवश्यक माना गया है। जिसकी प्राप्ति के लिए भौतिक/बाह्य अनुकूलताएँ भी आवश्यक है। सोमदेव सूरि का चिन्तन ..... मध्य-युग की शासन प्रणाली की बागडोर क्षत्रिय वर्ग के हाथों में थी तों प्रशासनिक व्यवस्थाओं की देखभाल मुख्यतः वैश्य वर्ग कर रहा था। चारों ही वर्णों के व्यक्ति जैन परम्परा से जुड़े थे। इसलिए जैन धर्म और आचार का समाज पर व्यापक प्रभाव था। परन्तु व्यापार वाणिज्य से जुड़े वैश्य वर्ग में जैन धर्म का अपेक्षाकृत अधिक विस्तार हो रहा था। कुशल राजकीय, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्थाओं के लिए समर्थ, बुद्धिमान और न्यायप्रिय राजा का होना आवश्यक था। जैन विचारक आचार्य सोमदेवसूरि (ग्यारहवीं शती) के विचार नैतिक, राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक आचार-संहिता प्रस्तुत करते हैं। वे कहते हैं कि राजा को शस्त्र और शास्त्र दोनों में प्रवीण होना आवश्यक है। उन्होंने राज्य का मूल क्रम (शासन व प्रशासन की क्रमबद्ध निष्पक्ष व्यवस्था) और विक्रम (पराक्रम/पुरुषार्थ। शौर्य) को बताया है। राज्य और व्यापार के संचालन में अध्यात्म की भूमिका रेखांकित करते हुए सोमदेव कहते हैं राजा को काम, क्रोध, लोभ, मान, मद और हर्ष; इन छ: अन्तरंग शत्रुओं पर विजय प्राप्त करना आवश्यक है। यही अपेक्षा प्रजा से भी वे करते हैं। जैसे वर्तमान में शासन व्यवस्था में विभिन्न मन्त्रालय आवश्यक है, उनका निर्देश सोमदेव भी देते हैं तथा सम्बन्धित विभाग को संभालने वाले की योग्यता का वर्णन भी करते हैं। नागरिकों की समृद्धि पर ही राज्य की समृद्धि निर्भर है। इसलिए व्यापार-वाणिज्य की उन्नति में राज्य को पूरा (324)