Book Title: Jain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Author(s): Dilip Dhing
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 326
________________ तेबीस शताब्दियों पूर्व ही हो चुका था। जैन सूत्रों में ब्रह्मचर्य को नीरस और संन्यासियों का व्रत ही नहीं, अपितु उसे जीवन्त और प्रत्येक सदाचारी मानव के लिए आवश्यक व्रत बताया गया है। कथानुयोग की अनेक कथाओं और गृहस्थाचार के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि जैन गृहस्थों ने गृहस्थ जीवन में भी नियमपूर्वक ब्रह्मचर्य का अनुपालन करके परिवार और समाज में अनुकूल वातावरण का निर्माण किया। इस व्रत ने जनसंख्या-नियन्त्रण के अलावा समाज में सदाचार की स्थापना तथा योग्य, स्वस्थ व समर्थ नागरिकों के निर्माण में महान योगदान किया है। नारी-स्वतन्त्रता और स्त्री-पुरुष समानता जैसे मुद्दों के सम्बन्ध में ब्रह्मचर्य एक केन्द्रीय भूमिका निर्वहन करने वाला निरापद नियम है। जैन धर्मावलम्बी आत्म-संयम अपनाने में अव्वल है। भारत की जनसंख्या के 1991 तथा 2001 के आँकड़ों के अनुसार जैन समाज की जनसंख्या व जनसंख्या वृद्धि दर अन्य धर्मावलम्बियों की तुलना में कम है। जबकि साक्षरता का प्रतिशत सर्वाधिक है। यही नहीं, स्त्री-पुरुष का अनुपात भी अनुकूलता के दूसरे क्रम पर है। गरीबीअमीरी और शिक्षा-अशिक्षा से जनसंख्या का सीधा सम्बन्ध है। अर्थशास्त्री माल्थस ने अपने जनसंख्या के सिद्धान्त में बताया कि जनसंख्या ज्यामितीय गति (1, 2, 4, 8, 16, 32) से बढ़ती हैं, जबकि खाद्यान्न वृद्धि अंकगणितीय गति (1, 2, 3, 4, 5, 6) से होती है। फलस्वरूप जनसंख्या और खाद्य-पूर्ति में असन्तुलन पैदा हो जाता है। इस असन्तुलन के निवारण का उपाय है - लोग आत्म-संयम और ब्रह्मचर्य को जीवन का अंग बनायें। यदि जनता आत्मसंयम की राह नहीं चुनती है तो प्राकृतिक आपदाओं से आबादी नियन्त्रण होता है। माल्थस ने चेतावनी देते हुए कहा था - लोग अपने कामोन्माद को यथासम्भव नियन्त्रण में रखें। यदि वे कामोन्माद को इस ढंग से तुष्ट करते हैं कि जिससे अन्त ' में अनिवार्य रूप से वेदना होती है तो उपर्युक्त नियम की सुस्पष्ट अवज्ञा ही होगी। माल्थस के बाद नव-माल्थसवादियों ने आबादी नियन्त्रण के लिए कृत्रिम उपायों की वकालात कर डाली। अर्थशास्त्र में जनसंख्या के और सिद्धान्त आये, जिनमें इष्टतम जनसंख्या का सिद्धान्त, जीव-विज्ञानीय सिद्धान्त और जनांकिकीय संक्रमण का सिद्धान्त मुख्य हैं। इन सभी सिद्धान्तों में जनसंख्या और अर्थव्यवस्था को लेकर विस्तृत विवेचन हुआ। यह आश्चर्यजनक है कि माल्थस के बाद सबने आत्म-संयम को उपेक्षित कर दिया। परिणाम स्वरूप जनसंख्या में कमी के साथसाथ जीवन की गुणवत्ता में भी कमी होने लगी। (297)

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