________________ परिच्छेद एक भ. महावीर का अर्थशास्त्रीय व्यक्तित्व ___ आगमों में वर्णित जीवन-दर्शन ढाई हजार वर्ष प्राचीन है। उसमें व्यक्ति और समाज का अर्थशास्त्र भी है। आगमों में जिन जीवन-मूल्यों की स्थापना और प्रतिष्ठा हैं, वे तत्कालीन समय से सन्दर्भित होने के बावजूद बैकालिक हैं। इसलिए आगम-साहित्य आज भी संसार को उसी तरह प्रकाशित करता है, जैसे सूर्य। .. __आगम-युग का अर्थतन्त्र और आगमिक अर्थतन्त्र दो. चीजें हैं। आगमयुग में सभी प्रकार के लोग थे। इसलिए समाज में सभी प्रकार का व्यवहार प्रचलित था। तीर्थंकर महावीर के जन्म के समय समाज की दशा बहुत अच्छी नहीं थी। तेबीसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के अन्तिम प्रतिनिधि श्रमण केशी कुमार ने इस स्थिति को देखकर कहा था कि चारों ओर अंधकार ही अंधकार है, भोली भाली जनता अंधकार में भटक रही है। इस काल निशा का अन्त कब होगा और कौन-सा सूर्य क्षितिज पर प्रकाश रश्मियाँ बिखेरता हुआ संसार को आलोकित करेगा? उनकी चिन्ता को दूर करते हुए इन्द्रभूति गौतम ने कहा था कि चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर समाधान-के-सूरज हैं।' वर्धमान ___ भगवान महावीर अहिंसा के सूर्य और सर्व-समृद्धि के अलोक-पुंज थे। जैसे सूर्योदय से पूर्व ही उजाला होने लग जाता है, वैसे ही उनके गर्भ में आते ही नव-परिवर्तन और पुनर्जागरण के संकेत मिलने लग गये थे। सबसे पहले तो उनके गर्भ में आते ही सम्पूर्ण राज्य में धन-धान्य की अभिवृद्धि होने लगी थी। फलस्वरूप उनका नाम वर्धमान रखा गया, जो ऋद्धि, सिद्धि, वृद्धि और समृद्धि का सूचक है। कौटुम्बिक प्रेम दूसरी घटना भी उनके गर्भ-काल की है। उन्होंने गर्भवास में विचार किया कि उनके हिलने-डुलने से माँ त्रिशला को कष्ट होता है, सो उन्हें वैसा नहीं करना चाहिये। उन्होंने हिलना-डुलना बन्द कर दिया। परिणाम स्वरूप त्रिशला चिन्तित हो गई। वर्धमान ने विचार किया कि उन्होंने तो माँ के सुख के लिए हिलना-डुलना बन्द किया था, परन्तु इससे तो माता-पिता और अन्य सभी की चिन्ता बढ़ गई है। (302)