________________ परिपथ में हस्तक्षेप करता है और इस प्रकार पौधों तथा पशु जीवन को क्षतिकारित करता है। यह जीवित रहने वालों का जीवित रहना कठिन और दुष्कर बना देता है। प्रदूषण से न सिर्फ जीवित रहने वालों को अपितु सम्पत्ति और भवन को भी दुष्प्रभावित करता है। जीव-मण्डल और पारिस्थितिकी में असन्तुलन तथा ग्रीन हाउस गैस प्रभाव को बढ़ाने में हिंसा और असंयम मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। मौजूदा दौर में उपभोक्ता का व्यवहार काफी असंयमित, खर्चीला और अपव्ययकारी हो गया है। प्रयोग करो और फैंको' (Use & Throw) की बाजार की नीति (Policy) वह बिना सोचे-समझे जहाँ-तहाँ अपना रहा है। उपभोक्ता का असंयमित व्यवहार प्रकृति और समाज दोनों के असन्तुलन का जिम्मेदार है। अजीवकाय संयम व्यक्तिगत और सार्वजनिक सम्पत्ति के दुरुपयोग पर स्वैच्छिक अंकुश का सूत्र है। वह हर प्रकार की वस्तु के विवेकसम्मत उपयोग की प्रेरणा देता है। प्रेक्षा संयम : हर प्रकार की वस्तु को भली प्रकार से देख-भाल कर उपयोग में लेना चाहिये। व्यापार में वस्तुओं के क्रय और विपणन पर भी यह बात लागू होती है। उपेक्षा संयम : जो बातें, घटनाएँ जीवन के प्रपंच को बढ़ाती हैं और गुणवत्ता घटती हैं, उन्हें नजरअन्दाज करना उपेक्षा संयम है। प्रमार्जन संयम जीवन का हर काम यतना से करने का बोध कराता है। परिठावणिया-संयम : देह की अशुचिताओं को इस प्रकार और ऐसे स्थान पर विसर्जित करना, जिससे अहिंसा और स्वच्छता को नुकसान नहीं हो। आर्थिक जगत् में औद्योगिक कचरा फेंकने की बड़ी समस्या है। उसे हर कहीं फेंक देने से स्थल, जल और वायु का पर्यावरण संदूषित होता है। नगरीय व्यवस्था में भी अपशिष्ट को उचित स्थान पर विसर्जित करना चाहिये। जनसंख्या-सिद्धान्त और ब्रह्मचर्य संयम का एक अर्थ होता है - आत्म-संयम यानि ब्रह्मचर्य। भगवान महावीर ने ढाई हजार वर्ष पूर्व ब्रह्मचर्य को मानव और मानव-समाज की बुनियाद के रूप में कई उपयोगी आयामों के साथ स्थापित किया। उन्होंने ब्रह्मचर्य को सभी व्रतों में श्रेष्ठ, उत्तम और बहुफल देने वाला बताया। अर्थशास्त्रीय दृष्टि से देखा जाय तो जिस जनसंख्या के सिद्धान्त को अर्थशास्त्री माल्थस ने अठारहवीं शताब्दी के अन्त (1798) में प्रतिपादित किया था, आगम ग्रन्थों में उसका निरूपण उससे (296)