________________ हो जाता है। तीर्थंकर अहिंसा-साधना और आध्यात्मिक-ऊर्जा के सघन पुंज होते हैं। करुणा उनके अणु-अणु में होती है। इसीलिये वे सबके कल्याण के लिए उपदेश प्रदान करते हैं। तीर्थंकर के पंच कल्याणकों के समय लोक (सृष्टि) सकारात्मक तरंगों से रोमांचित हो जाता है। फलस्वरूप, नरक में प्रतिपल दारूण कष्ट झेल रहे जीव भी क्षण भर के लिए सुखानुभूति करते हैं।" जिस प्रकार करुणा की तरंगों का असर अच्छा होता है, उसी प्रकार कराह, चीख और पीड़ा से उपजी तरंगों का असर भी होता है और वह बुरा होता है। कत्लखाने सघन और मारक पीड़ा-तरंगें उत्सर्जित करते हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. मदन मोहन बजाज ने अपने शोध-पत्र में इन तरंगों का वैज्ञानिक अध्ययन करके यह सिद्ध किया है कि भूकम्प, सुनामी और अन्य प्रकार की आपदाओं की प्रमुख वजह हिंसा, हत्या और कत्लखाने हैं। भौतिकी का क्रियाप्रतिक्रिया सिद्धान्त भी इस बात को सिद्ध करता है। प्राणियों के वध से उत्पन्न ये तरंगें निरन्तर संघनित होती रहती है। जब इन तरंगों की ऊर्जा विस्फोटक बिन्दु पर पहुँच जाती है, तब धरती काँपती है, जिसे भूकम्प कहा जाता है। भूकम्प और महामारियों से जन-धन की बेहिसाब बर्बादी होती है। जो लोग सतही बातें करते हैं, उन्हें अहिंसा के अर्थशास्त्र के दर्शन को समझना चाहिये। मांस-निर्यात और अर्थतन्त्र - यान्त्रिक बूचड़खानों ने अर्थतन्त्र को तार-तार करने में कोई कसर नहीं छोडी। हिंसा के व्यापारियों ने खुनी-डॉलर प्राप्त करने के लिए मांस के निर्यात का लम्बा-चौड़ कारोबार फैला दिया। जिस देश ने दुनिया को अहिंसा, सत्य और शान्ति जैसे मूल्य निर्यात किये हो, यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि वह अब अव्वल मांस-निर्यातक बनना चाह रहा है। मांस निर्यात की कुनीति से देश की अर्थव्यवस्था का मेरूदण्ड ही हिल गया है। खेती-बाड़ी पर निर्भर देश की दो तिहाई आबादी से उसका एकमात्र सहायक पशुधन छीना जा रहा है तथा उसे कत्ल कर विदेशों में भेजा जा रहा है। पशुधन की निरन्तर होती कमी से या तो बेरोजगारी बढ़ी है या लोगों के रोजगार के साधन वक्र और नकारात्मक ढंग से बदल गये है अथवा बदल देने पड़े हैं। एक ओर देश में 32 करोड़ की आबादी भूख और कुपोषण की शिकार हो, दूसरी ओर निर्यात के लिए पशुओं का अन्धाधुन्ध कत्ल देश के साथ क्रूर (289)