________________ लोभ-लालच में किये जाने वाले खूनी धन्धों से अर्थ के साथ जुड़ने वाले नीति, व्यवस्था और शास्त्र जैसे शब्द लज्जित हो गये। अर्थतन्त्र मानव, मानवता और दुनिया के लिए अनर्थ का तन्त्र हो गया। बताया जा चुका है कि तीर्थंकर महावीर के प्रमुख उपासकों के पास प्रचुर पशुधन था। पशुधन गाँव को आत्म-निर्भर और गरीब को अमीर बनाकर अर्थव्यवस्था को सदियों से गति देता रहा है। एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत के पशुधन का बाजार-मूल्य 40000 हजार करोड़ रुपये हैं। ये पशु वर्ष में 4 करोड़ टन दूध देते हैं तथा इनसे एक अरब टन गोबर मिलता है। देश में 19 करोड़ 40 लाख गाय-बैल और 7 करोड़ भैंसें हैं, जो 4 करोड़ अश्व-शक्ति (हॉर्स-पावर) के बराबर ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। यह ऊर्जा परिवहन में काम आती है। देश में जितनी ऊर्जा प्रयुक्त है, उसकी दो तिहाई ऊर्जा पशु-जनित है। हिसाब लगाया गया है कि यदि हम कृषि क्षेत्र से पशु-बल को हटाना चाहें तो भारत को पेट्रोल पर प्रतिवर्ष करीब 32 हजार करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च करने पड़ेंगे। मांस के लिए पशुओं को कत्लखानों के हवाले करना न तो अहिंसा के अर्थशास्त्र की परिधि के अन्तर्गत है और न ही किसी भी प्रकार के नीतिशास्त्र के अनुरूप यह कृत्य है। - मुम्बई स्थित देवनार कत्लखाना एशिया का सबसे बड़ा कत्लखाना माना जाता है। उसमें प्रतिवर्ष करीब 1 लाख 20 हजार बैल, 80 हजार भैंसें तथा 25 लाख भेड़-बकरियों का वध किया जाता है। करीब डेढ़ हजार कर्मचारी इस बर्बर काम को अंजाम देते हैं। बताया जाता है कि इससे 4 करोड़ रुपयों की आमदनी होती है। इसके विपरीत करीब 200 करोड़ रुपयों की सम्पत्ति नष्ट होती है और गाँवों में लगभग 1 लाख लोग हर साल बेरोजगार हो जाते हैं भारतीय भेड़ों को यदि मांस के लिए मारने की बजाय, उनकी ठीक तरह से देख-भाल की जाय तो उनसे प्रतिवर्ष 450 करोड़ रुपये मूल्य का खाद, 40 करोड़ रुपये का ऊन और 500 करोड़ रुपये मूल्य का दूध प्राप्त कर सकते हैं। किन्तु मांस की खातिर उन्हें मार कर 27 करोड़ रुपये मूल्य का ऊन विदेशों से मंगवाते हैं और हजारों बुनकरों की रोजी-रोटी छीनते हैं। एक अनुमान के अनुसार हमारा पशुधन हमें प्रतिवर्ष 34000 करोड़ रुपये का आर्थिक लाभ देता है, जिसमें 6000 करोड़ रुपये का दूध, 5000 करोड़ रुपये की भारवाहन शक्ति, 3000 करोड़ की खाद और 20000 करोड़ की गैस सम्मिलित है। यह तथ्य है कि बेतहाशा बढ़ते वाहनों की संख्या से आर्थिक और पर्यावरण की भारी क्षति हो रही है। पर्यावरणविद् पशु-वाहनों की वकालात करने लगे हैं। (287)