________________ कत्लखाने और पर्यावरण पश-पक्षियों के कत्ल के साथ-साथ सष्टि में बहुत सारी चीजें कत्ल हो कर खतम हो जाती हैं। बहुत सारी चीजों का स्वरूप नकारात्मक हो जाता है। इसलिए भगवान महावीर द्वारा प्राणी-वध को चण्ड, रौद्र, क्षुद्र, अनार्य, करुणारहित, नृशंस और महाभयंकर कहना सौ टका सही है। सम्पूर्ण मानव जाति को वे परम् पावन और प्रेरक सन्देश देते हैं - जिसे तू मारना चाहता है, वह तू ही है। जिसे तू शासित करना चाहता है, वह तू ही है। जिसे तू परिताप देना चाहता है, वह तू ही है। प्रकृति और पर्यावरण के विनाश में हिंसा और असंयम की मुख्य भूमिका है। मांसाहार और कत्लखानों ने तो विश्व-पर्यावरण पर गज़ब ढाया है। हमारे देश की टिकाऊ कृषि प्रणाली का रहस्य यही है कि इसमें खेती और पशुपालन को एक दूसरे से जोड़कर रखा गया है। जैव पदार्थों को एक ऐसे रूप में बदलने में, जिसका इस्तेमाल पौधे आसानी से कर लें, पशुओं की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। स्वतन्त्र भारत के प्रथम कृषि मन्त्री के. एम. मुंशी के अनुसार 'मवेशी प्रकृति के सबसे बड़े भूमि उपचारक हैं। वे मिट्टी को उर्वर बनाने वाले अभिकर्ता हैं। वे गोबर के रूप में वह जैव सामग्री उपलब्ध कराते हैं, जो तनिकसे परिष्कार के बाद बहुमूल्य पोषक तत्व में तब्दील हो जाती है। भारत में परम्परा, धार्मिक भावना और आर्थिक जरूरतों ने मिलकर मवेशियों की इतनी बड़ी आबादी खडी की है कि वह जीवन-चक्र को हमेशा गतिशील बनाये रखने में सक्षम है, बशर्ते हम इस तथ्य को जान पाएँ।6 कत्लखाने भूमि के उपजाऊपन को नष्ट करते हैं। मौत की इस अर्थव्यवस्था ने जैव विविधता संरक्षण को भी भारी क्षति पहुँचाई है। भारत की 30 प्रतिशत स्तनपायी पशु-प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी है। कत्लखानों से निकलने वाला मलवा भी पर्यावरण को दूषित करता है। वह अस्वच्छता बढ़ाता है। कोई भी व्यक्ति शाकाहारी हुए बिना पर्यावरण रक्षक नहीं हो सकता, जो जमीन, हवा, पानी और गरीब की रोजी-रोटी बचाने की कोशिश कर सके। शाकाहारी बनने का अर्थ सभी के लिए पर्याप्त व सस्ता भोजन, ज्यादा जंगल, स्थायी बारिश, बेहतर भू-जल स्तर, स्वच्छ नदियाँ आदि होगा।" कत्लखाने और भूकम्प यह आगमिक तथ्य है कि जहाँ तीर्थंकर होते हैं अथवा विचरण करते हैं, वहाँ कोई उपद्रव नहीं होता है। यदि कहीं कोई उपद्रव होता है तो वह शान्त/समाप्त (288)