________________ 7. आदर्श घर : गृहस्थ का आवास न एकदम खुला हो, न एकदम बन्द हो / जहाँ पर्याप्त आबादी हो, रोशनी, हवा व अन्य आवश्यक सुविधाओं की समुचित व्यवस्था हो, वहाँ घर होना चाहिये। आवास अनुकूल नहीं हो तो जीवन के विकास पर प्रतिकूल असर होता है। 8. घर के अनेक द्वार न हो : घर से सम्बन्धित लगातार यह दूसरा नियम घर के सुव्यवस्थित और पूर्णरूप से सुरक्षित रखने पर बल देता है। इस नियम का आर्थिक पक्ष यह है कि अनेक द्वार वाला मकान सुरक्षा की दृष्टि से अनुपयुक्त होता है। 9. सत्पुरुषों की संगति : व्यक्ति अपने संगी-साथियों से जाना-पहचाना जाता है। इसलिए उसे आचारनिष्ठ व्यक्तियों से प्रगाढ़ व सतत् परिचय रखना चाहिये। ऐसे परिचयों से जीवन में यश और लाभ की वृद्धि होती है। भगवान महावीर ने अज्ञानी व्यक्तियों की संगति को अपकीर्तिजनक बताया है।" 10. माता-पिता की सेवा : भगवान महावीर का जीवन माता-पिता के प्रति श्रद्धा-सेवा भाव का अनुपम उदाहरण है। उन्होंने गर्भस्थिति में ही यह प्रतिज्ञा की कि माला-पिता के जीवित रहते हुए वे प्रव्रज्या अंगीकार नहीं करेंगे।" वर्तमान युग में बढ़ते एकल परिवारों की वजह से महान उपकारी माता-पिता की उपेक्षा होने लग गई है। पारिवारिक प्रेम नहीं होने से कौटुम्बिक व्यवसाय और पुश्तैनी धन्धों पर गाज गिरी है। यह नियम मानव को कर्तव्य का बोध कराता है। - 11. कलहप्रद वातावरण से दूर रहें : जो क्षेत्र उपद्रव और बीमारियों से रहित हो, .. वहाँ रहना और व्यापार करना चाहिये। शान्ति समृद्धि की जनक है। . 12. देश, जाति व कुल के विरुद्ध आचरण नहीं करना : सद्गृहस्थ को अपने खानपान और जीवन व्यवहार में ऐसा आचरण नहीं करना चाहिये, जिससे लोक-निन्दा हो। 13. आय के अनुसार व्यय : अर्थ गृहस्थ जीवन की धुरी है। उसमें पूर्ण सामंजस्य रहना चाहिये। संयमित जीवन जीने वाला आय से अधिक व्यय नहीं करता है। आजकल जो उधार के आधार पर विलासी जीवन जीने की वृत्ति चल पड़ी है, उसके दुष्परिणाम भी सामने आने लगे हैं। राष्ट्रों के बजट में भी वित्तीय मदद से विकास की अवधरणा बढ़ी है। इससे सहयोगकर्ताओं का आर्थिक दबाव (233)