________________ हमारे समाजशास्त्री और अर्थशास्त्री जानते-देखते हुए भी नजरअन्दाज कर रहे हैं, यह दुखद आश्चर्यजनक है। 4. लोभ : लाभ अर्थशास्त्र का प्रेरक तत्व है। लोभ दुष्प्रेरक तत्व है। लाभ में साधन-शुद्धि का विवेक रखा जाता है। लोभ व्यक्ति को साधन-शुद्धि की फिक्र नहीं करने देता है। अर्थ-नीति को अनीति में बदलने में लोभ की मुख्य भूमिका है। लोभ की वजह से दुनिया भर में आर्थिक घोटाले, भ्रष्टाचार, झगड़े-टण्टे, हिंसा, युद्ध आदि होते हैं। लोभ और तृष्णा के वशीभूत इंसान ने पर्यावरण और संस्कृति को अपूरणीय नुकसान पहुँचाया है। संसार की स्थायी भलाई और विश्व-शान्ति के लिए मानव में निर्लोभता की चेतना को जागृत करना बेहद जरूरी है। लाभ से लोभ बढ़ता है। स्वर्ण-रजत और वस्तुओं के ढेर भी लोभी की तृष्णा को शान्त करने में असमर्थ है। भगवान महावीर लोभ पर अंकुश के लिए सन्तोष का सुझाव देते हैं। सन्तोष और साधन-शुद्धि के लिए वे गृहस्थ के लिए इच्छा-परिमाण व्रत का विधान करते हैं। लोभ के विभिन्न रूपों को लक्ष्य करते हुए उन्होंने लोभ के सोलह नाम बताये हैं2 - 1. लोभ (संग्रह-वृत्ति) 2. इच्छा (अभिलाषा) 3. मूर्छा (तीव्रतम संग्रह-वृत्ति) 4. कांक्षा (आकांक्षा)। 5. गृद्धि (आसक्ति)। 6. तृष्णा (लालसा)। 7. मिथ्या (लोभ के लिए झूठ) 8. अभिध्या (अनिश्चय)। 9. आशंसना (प्राप्ति की इच्छा) 10. प्रार्थना (याचना)। 11. लालपनता (चाटुकारिता) / 12. कामाशा (काम की इच्छा)। 13. भोगाशा (भोग की इच्छा)। 14. जीविताशा : इसका लक्षणार्थ है - मरण शय्या पर भी लोभ नहीं त्यागना। 15. मरणाशा : इच्छापूर्ति नहीं होने पर मरने की इच्छा करना। 16. नन्दिराग (प्राप्त में अनुराग)। कषाय-मुक्ति से जीवन और जगत् का सर्व-मंगल जुड़ा हुआ है। कषायमुक्ति से विश्व में शान्ति, समृद्धि और खुशहाली का सपना साकार होगा। लेश्या और व्यक्तित्त्व - मानव के व्यक्तित्व और मनोभाव को प्रकट करने के लिए जैन दर्शन में लेश्या-सिद्धान्त की बहुत चर्चा है। लेश्या के आधार पर व्यक्ति को घोर अनैतिकता के तिमिर से निकाल कर परम नैतिकता के उज्ज्वल आलोक की ओर ले जाने का वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक उपाय बताया गया है। वस्तुतः सारी समस्याओं की जड़ व्यक्ति के संकल्प और मनोभाव हैं, जो व्यवहार में प्रकट होकर व्यक्ति का (267)