________________ रचना का 1 करोड़ 20 लाख वर्षों के काल-पटल पर विस्तृत व गहन अन्वेषण किया और निष्कर्ष दिया कि मानव 12 लाख वर्ष ईसा पूर्व तक फलाहारी था। करीब 12 हज़ार वर्ष पहले नव-पाषाण युग की क्रान्ति ने उसे गाँव, खेत, बीज, हल, खलिहान, खाद आदि से परिचित कराया तदनुसार वह सुविकसित शाकाहारी बना। जल-बचत और शाकाहार आज शाकाहार न सिर्फ मात्र आहार, अपितु एक सम्पूर्ण सुविकसित जीवन शैली बन चुका है। शाकाहार मितव्यय-का-अर्थशास्त्र है। संसार में जलसंकट का सबसे बड़ा कारण मांसाहार है। एक पौण्ड (एक पौण्ड = 0.453592 किलोग्राम) मांसाहार के उत्पादन में औसतन 2500 गैलन (एक गैलन = 3.788 लीटर) पानी लगता है। इतने जल से एक पूरे परिवार का महिने भर का काम चल जाता है। जबकि एक पौण्ड गेहूँ के उत्पादन में सिर्फ 25 गैलन पानी लगता है। अमेरिका में एक मांसाहारी के दिनभर के आहार-उत्पादन में 4000 गैलन से अधिक जल लगता है; एक अण्डाहारी व्यक्ति के आहार पर 1200 गैलन; और एक शुद्ध शाकाहारी के आहार पर सिर्फ 300 गैलन जल खर्च होता है। यह हैरानी की बात है कि जितने ज़ल से एक शाकाहारी पूरे वर्ष काम चला लेता है, मांसाहारी उस जल का उपभोग केवल एक महिने में कर लेता है।" .. कृषि और मांस-उत्पादन में लगने वाले जल की तुलना भी चौंकाने वाली है। एक पौण्ड गेहूँ के उत्पादन में जितना जल लगता है, उससे 100 गुना अधिक जल एक पौण्ड मांस के उत्पादन में लगता है। मांसं के उत्पादन में जितना पानी लगता है, धान्य (चावल) के उत्पादन उसका 10वाँ भाग ही लगता है।" पानी हर प्रकार के शाकाहार में मांसाहार की तुलना में कई गुना कम लगता है। इस सम्बन्ध में अमेरिका के केलीफोर्निया उत्पादन संस्थान के आँकड़ें प्रस्तुत किये जा रहे प्रतिलीटर जल-खपत एक किलो उत्पादन टमाटर आलू 00090 .. 00092 00100 00125 गाजर (283)