________________ सन्दर्भ 1. समवायांग 1/1, स्थानांग 1/1 2. शास्त्री, देवेन्द्र मुनि : जैन दर्शन स्वरूप और विश्लेषण पृ.-87 3. उत्तराध्ययन 36/68 उत्तराध्ययन (36/70) में अग्नि और वायु को अपेक्षा से गतिशील माना है तथा स्थावर में पृथ्वी, जल और वनस्पति को लिया गया है। उत्तराध्ययन 36/73-76, प्रज्ञापना (1/24) में पथ्वीकाय के 40 भेद बताये गये हैं। मूलाचार में पथ्वी के 36 भेद और तिलोयपण्णत्ति में 16 भेद बताये हैं। उत्तराध्ययन 36/86, मूलाचार (गाथा 210) में 8 भेद बताये गये हैं। 7. नफा-नुकसान, जयपुर 9-10 फरवरी, 2005 8. उत्तराध्ययन 36/95-96, प्रज्ञापना (1/38-54) में वनस्पति के 12 वर्ग. किये गये हैं। . उत्तराध्ययन 36/101-109, मूलाचार (गाथा 211) में अग्नि के 6 भेद बताये गये हैं। 10. उत्तराध्ययन 36/118 11. भुवनेश मुनि (डॉ.) 'जैन आगमों के आचार दर्शन और पर्यावरण संरक्षण ____का मूल्यांकन', पृ.-190 12.. दशवैकालिक सूत्र 4/62 13. बेइंदिया तेइंदिया, चउरो पंचिंदिया चेव। - उत्तराध्ययन 36/126 14. उत्तराध्ययन 36/172-173 15. उत्तराध्ययन 36/180 16. उत्तराध्ययन 36/181-182 .. 17. - उत्तराध्ययन 36/188 (279)