________________ लग जाती है तथा पिशाच-ग्रस्त मनुष्य की तरह काँपने लगता है। क्रोध दुश्मन का उपकार करता है तथा परिवारजनों, मित्रों व अपनों के लिए समस्या का प्रत्यक्ष कारण बनता है।' भगवती सूत्र में क्रोध के दस नाम बताये गये हैं। - 1. क्रोध। 2. कोप। 3. दोष : स्वयं पर अथवा दूसरों पर दोषारोपण करना। स्वयं पर दोषारोपण करते हुए व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है। कभी-कभी दूसरों पर आरोप लगाते हुए भी व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है। आत्महत्या कषाय का परिणाम है। यह परिवार और समाज के लिए कलंक है। इससे कौटुम्बिक और सामाजिक गौरव मटियामेट हो जाता है। 4. रोष (नाराजगी)। 5. संज्वलन (ईर्ष्या करना) : ईर्ष्या से व्यापार-जगत की स्वस्थ-स्पर्धा को धक्का लगता है। 6. अक्षमा (गलती माफ नहीं करना)। 7. कलह। 8. चण्डिक्य (क्रोध का वीभत्स रूप)।9. मण्डन : किसी पर हाथ उठाना या काया से अनुचित व्यवहार करना। 10. विवाद : अण्ट-शण्ट बोलना और झगड़ा कायम रखना। अनावश्यक बहस करना। क्रोध नहीं करने वाला - अपनी अपरिमित प्राण ऊर्जा बचा लेता है, सहिष्णु होता है, विवेकवान तथा सोच विचार पूर्वक कार्य करने वाला होता है, सबका प्रिय बन जाता है, अच्छी निर्णय क्षमता वाला और दूरदर्शी होता है तथा पारिवारिक विग्रह और केश से बचा रहता है - ऐसा व्यक्ति स्वयं विकास करता है। साथ ही अपने परिवार, व्यवसाय और इनसे जुड़े लोगों के विकास का कारण बनता है। एक सफल व्यवसायी और कुशल प्रबन्धक बनने के लिए क्रोध-त्याग अत्यावश्यक है। क्रोध विपन्नता और विपत्तियों को न्यौता देता है, जबकि अक्रोध से सम्पन्नता और सम्पत्ति में अभिवृद्धि होती है। ___2. मान : अमीरी जब मान पर आरूढ़ हो जाती है, तो पूंजीवाद, साम्राज्यवाद, वर्गवाद आदि के दुष्परिणाम समाज को भोगने पड़ते हैं। मान के वश हो व्यक्ति वैभव का प्रदर्शन करता है। ऐसा प्रदर्शन हमारे समाज-दर्शन को विद्रूप बना देता है। धन-मद में चूर व्यक्ति अपने वैभव-प्रदर्शन के सामाजिकआर्थिक दुष्प्रभावों की कोई चिन्ता नहीं करता है। भगवान महावीर अहंकार को अज्ञान का द्योतक मानते हैं।" वे व्यक्ति के जातीय और कौटुम्बिक अहंकार को अनुचित ठहराते है।” ज्ञान और सदाचरण मनुष्य की श्रेष्ठता के प्रतीक है। जो (265)