________________ की संख्या व उपयोग को सीमित करना। इसे उपकरण अवमोदरिका कहा गया है। द्वितीय, निरर्थक विचारों को कम करना। इसे भाव अवमोदरिका कहा गया है। सूत्रकृतांग में कहा गया 'अप्प भासेज सुव्वए'15 साधक को कमसे-कम शब्दों का प्रयोग करना चाहिये। ऊनोदरी तप व्यक्ति को मर्यादित, संयमित और योग्य बनाता है। 3. भिक्षाचरी : इस तप की व्यवस्था उन साधकों के लिए विशेष तौर पर की गई है, जो समाज के नैतिक आध्यात्मिक उत्थान के लिए अपना घर-बार तक छोड़ देते हैं। बड़े व महान उद्देश्य/उद्देश्यों के लिए अनुदान की आकांक्षा भिक्षाचर्या है। आगमों में इस तप के लिए बहुत अर्थपूर्ण शब्द मिलते हैं, जैसे - गोचरी और माधुकरी-वृत्ति / ' गोचरी का शब्दार्थ है, मूल नष्ट किये बगैर घास चरना। माधुकरी का अर्थ है, जैसे भौंरा फूलों को कष्ट दिये बगैर अपनी क्षुधा शान्त कर लेता है, वैसे ही साधक को भिक्षाचरी करनी चाहिये। इनका अर्थशास्त्रीय अर्थ यह है कि ग्राहक को कष्ट दिये बगैर व्यवसाय करना और प्रजा को कष्ट दिये बगैर कर-संग्रहण करना। व्यवसायी मुनाफाखोरी नहीं करें और सरकार अनुचित करारोपण नहीं करें तथा हर प्रकार के करदाता से थोड़ा थोड़ा कर प्राप्त करके राजकोष भरे। 4. रस-परित्याग : आज की भाषा में कहा जाय तो वसा-युक्त आहार पर अंकुश लगाना रस-परित्याग है। महात्मा गांधी ने जो अस्वाद-व्रत बताया, वह रसपरित्याग का ही रूप है। स्वाद के वशीभूत होकर स्वास्थ्य और बजट की अवहेलना नहीं करनी चाहिये। हृदय-रोग, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, कैंसर आदि बीमारियों का सीधा सम्बन्ध वसा-युक्त आहार का अधिक सेवन है। उत्तराध्ययन में अधिक सरस आहार को उत्तेजना पैदा करने वाला बताया गया है। रसपरित्याग तप से व्यक्ति अनेक रोगों से बचा रहेगा, वह उत्तेजना का व्यवहार नहीं करेगा। इससे इन रोगों पर होने वाला व्यक्तिगत और राजकीय व्यय नहीं होगा तथा उत्तेजना जनित समस्याएँ समाप्त होगी। 5. कायकेश : जीवन में कष्टों को समभाव से सहन/स्वीकार करना तप है। ऐसे कायिक कष्ट झेलना कायकेश है। यदि हम गर्मी में बिना पंखा चलायें अथवा ए.सी. या कुलर की बजाय पंखे से ही काम चला सकते हैं, तो हम सहज रूप से कायकेश तप कर लेंगे। इसी तरह सर्दी में बिना हीटर या ए.सी. रह सकें तो (248)