________________ पहुँचाई है। जल के वाणिज्यिक उपयोग ने उस पर कहर बरपा दिया। अब 'पानी बचाओ' का नारा दिया जा रहा है। पहले सबको शुद्ध पेय जल, फिर उसका अन्य उपयोग' एवं 'सीमित जल से विकास कैसे हो ?' ये सूत्र अर्थ नीति के पान-पुण्य हैं। 3. लयन पुण्य : रहने के लिए सबको आश्रय चाहिये। हमारी अर्थव्यवस्था सबको समुचित व सुरक्षित आवास मुहैया कराने में सफल हो, ऐसी नीति बननी चाहिये। हमारे नीति-निर्माताओं को यह चिन्ता होनी चाहिये कि क्यों आज भी लाखों लोगों को खुले आकाश तले सोना पड़ता है। 4. शयन पुण्य : किसी को रैन बसेरा तथा शैया प्रदान करना शयन पुण्य है। कोई ऐसा विपरीत आचरण नहीं करें, जिससे किसी की नींद हराम हो जाय। 5. वस्त्र पुण्य : धरती पर अनेक जनों को अभाव के कारण तन को ढाँकने के लिए पूरे कपड़े नहीं मिलते हैं। हो सकता है, कोई धनाढ्य प्रचुर अन्न-वस्त्र का दान करता हो; परन्तु वह यदि अन्न का अपव्यय करता है और पहनने ओढ़ने के वस्त्रों का अनावश्यक संग्रह करता है तो वह समग्र रूप से इन . चीजों का अभाव पैदा करता है अथवा इन चीज़ों को महंगी करता है। अपव्यय और अतिसंग्रह न प्रकृति को मंजूर है, न ही अर्थतन्त्र को। संग्रहवृत्ति पाप का कारण है और असंग्रह पुण्य का। 6. मन पुण्य : मन से अपने और दूसरों के हित का चिन्तन करना मन पुण्य है। दूसरों का अहित चाहकर अपना हित साधने वाला सुख व सफलता की लम्बी यात्रा नहीं कर सकता। हृदय में मंगल भावनाएँ संजोने वाला मनस्वी होता है। एक मनस्वी व्यक्ति अच्छा प्रबन्धक व सफल व्यवसायी होता है। 7. वचन पुण्य : वाणी की सत्ता भी बहुत विराट् होती है। उसके विवेक सम्मत उपयोग से सर्वत्र सफलता हासिल होती है। जो वाणी किसी भी प्राणी का अहित नहीं करती, वह उत्तम होती है। सम्पन्न बनने के लिए वचनों की दरिद्रता छोड़नी पड़ेगी। 8. काया पुण्य : स्वस्थ शरीर के सहारे जीवन निर्विघ्न आगे बढ़ता है। किसी के श्रम का शोषण नहीं करना अर्थशास्त्रीय काया-पुण्य है। एक उदाहरण लें। कोई व्यक्ति एक रोटी झूठी छोड़ता है तो वह गेहूँ बोने वाले किसान के श्रम का अपमान करता है, साथ ही वह रोटी बनाने वाली गृहिणी या रसोइये के श्रम (244)