________________ पर बेमतलब के कार्यक्रम देखना-सुनना, भड़काऊ साहित्य पढ़ना आदि / इसमें सम्मिलित हैं। अनर्थदण्ड के ऐसे स्थलों और निमित्तों से व्रतधारी को, .. विवेकवान को सदैव बचना चाहिये। अनर्थदण्ड विरमण व्रत के समुचित परिपालन के लिए पाँच अतिचारों से बचने का निर्देश दिया गया है681. कन्दर्प : अशिष्टता से हँसी-ठट्ठा करना, वासना को उद्दीप्त करने वाली चर्चाएँ करना कन्दर्प है। इस तरह की आदतों से व्यक्ति की शालीनता और कुलीनता घट जाती है, जिसका विपरीत असर उसके जीवन के सम्बन्धों और व्यापारों पर होता है। 2. कौत्कुच्य : शरीर के अंगोपांगों से अभद्र चेष्टाएँ करना इस अतिचार के अन्तर्गत आता है। व्यक्ति अपने हाव-भाव में भी भद्र और ईमानदार परिलक्षित होना चाहिये। 3. मौखर्य : अधिक बोलना, बोल-बोल करना मौखर्य है। व्रती को वाणी की कीमत समझते हुए उसका कभी दुरुपयोग नहीं करना चाहिये। जीवन की सफलता और सम्पन्नता के पीछे वचन-सम्पदा का बहुत योगदान होता है। 4. संयुक्ताधिकरण : हिंसक साधनों और हथियारों का संग्रह करना संयुक्ताधिकरण है। ऐसे शस्त्र-अस्त्रों का संग्रह करने वाला दुस्साहसी व भय पैदा करने वाला हो जाता है। किसी एक व्यक्ति या समुदाय के ऐसा करने से दूसरे भी संयुक्ताधिकरण के लिए दुष्प्रेरित होते हैं। ऐसी स्थितियों से बचने के लिए विश्व में निरस्त्रीकरण और परमाणु अप्रसार सन्धियों के प्रयास हो रहे हैं। 5. उपभोग-परिभोग बढ़ाना : जिन वस्तुओं की आवश्यकता नहीं हैं, उन्हें खरीदना, लाना और घर में रखने से इस अतिचार का दोष लगता है। खानेपीने और उपयोग करने की वस्तुओं को अनावश्यक रूप से संग्रह करने से जहाँ व्यक्ति का बजट बिगड़ता है, वहीं आर्थिक जगत में मांग और आपूर्ति का सन्तुलन गड़बड़ा जाता है। व्यापारिक जमाखोरी से महंगाई, वस्तुओं का कृत्रिम अभाव और मुनाफाखोरी बढ़ती है। 'घरेलू जमाखोरी' से वस्तुओं का दुरुपयोग होता है। ऐसा करने से सामान्य तबके के व्यक्तियों के लिए कुछ चीजें अनावश्यक/कृत्रिम रूप से महंगी हो जाती है। समग्र रूप से राष्ट्रीय उत्पादन, राष्ट्रीय आय और सम-वितरण पर जनता की ऐसी-अपव्ययकारी वृत्तियों का विपरीत प्रभाव होता है। (198)