________________ विचार व्यक्ति और समुदाय की सुख-शान्ति छीन लेते हैं। जिन प्रशस्त विचारों और भावों की अकल्पनीय शक्ति से व्यक्ति कहाँ-से-कहाँ पहुँच सकता है; अपध्यान उस अपार शक्ति को क्षीण कर देता है और व्यक्ति जहाँका-तहाँ रह जाता है या जीवन में कोई विशेष प्रगति नहीं कर पाता है। सफलता, उन्नति और लक्ष्य-प्राप्ति के लिए व्यर्थ के विचारों से बचना अत्यावश्यक है। 2. पापकर्मोपदेश : किसी को दुर्भावनापूर्वक गलत सलाह देना पापकर्मोपदेश है। कितने ही लोगों को दूसरों को भिड़ाने में मजा आता है। वे अपने कुटिल बयानों और झूठी सलाहों से उपद्रव मचा देते हैं। राजनीति में कई साम्प्रदायिक, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ें कुछ लोगों द्वारा भिड़ाने के कारण होते हैं। व्यवसाय जगत में किसी को निन्द्य या अवैध व्यापार करने या गलत तरीकों से धनार्जन की सलाह देना भी अनर्थदण्ड है। वकील और न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता सही सलाह पर निर्भर करती है। 3. प्रमादाचरण : जीवन व्यवहार और कार्यों को सजगतापूर्वक नहीं करना प्रमाद-आचरण है। मद्य या मद, विषय-विकार, क्रोधादि कषाय, निद्रा और विकथा - ये प्रमाद के भेद हैं। इनसे सन्तुलित और सुखी जीवन में गम्भीर व्यवधान पैदा होता है। ये चीजें जीवन के सौभाग्य को क्षत-विक्षत कर देती है। न सिर्फ आध्यात्मिक हानि, अपितु भौतिक हानियाँ और अभाव प्रमादाचरण से उत्पन्न होते हैं। 4. हिंस्रप्रदान : जो हिंसाकारी उपकारण, हथियार, शस्त्र-अस्त्र आदि हैं, उनका _ वितरण व आपूर्ति करना हिंस्रप्रदान है। संसार युद्ध और आतंकवाद की विभीषिका झेल रहा है, उसमें हिंस्रप्रदान की मुख्य भूमिका है। विश्वराजनीति में हथियारों की होड़ मची हुई है। राष्ट्रों के बीच मुक्त और चोरी छिपे हथियारों का आदान-प्रदान, आतंककारी संगठनों को महाविनाशकारी हथियारों की आपूर्ति जैसी गतिविधियों से विश्व की शान्ति और समृद्धि का कोई सम्बन्ध नहीं है। व्यक्ति और विश्व के समग्र व स्थायी विकास के लिए हथियारों की इस होड़ाहोड़ी से सबको बचना पड़ेगा। 5. दुःश्रुति : जैसे फालतू बातें करना, निन्दा-चुगली करना अनर्थदण्ड है, वैसे ही फालतू बातें और निन्दा सुनना भी अनर्थदण्ड है। गप्पे हाँकना-सुनना, टीवी (197)