________________ 3. भय दान : किसी दबाव, आतंक या डर से दान करना भय दान है। दबाव में किया जाने वाला दान दान नहीं होता है। संग्रह व भय दान से समाज में रिश्वतखोरी व भ्रष्टाचार बढ़ता है। 4. कारुण्य दान : दिवंगत आत्मा की शान्ति के लिए जो कर्मकाण्ड किये जाते __ हैं, उन्हें कारुण्य दान के अन्तर्गत माना गया है।" जैन विचारकों ने इस तरह के कर्मकाण्डों को समाज के लिए अनुचित बताया। हाँ, दिवंगतों की पुनीत स्मृति में सत्कार्यों में दान करना स्वीकार्य है। 5. लजा दान : लोक लाज से दान देने की बजाय स्वेच्छापूर्वक दिया जाना चाहिये। इससे दान का महत्व बढ़ जाता है। 6. गौरव दान : गर्व-रहित होकर दिये जाने वाले दान से दान और दानी दोनों का गौरव बढ़ता है। 7. अधर्म दान : कुपात्र को दिया गया दान अधर्म दान है। जिस दान से समाज व देश में अराजकता बढ़े और मूल्यों का पतन हो, वह अधर्म दान है। आतंककारियों, व्याभिचारियों तथा हिंसा में संलग्न लोगों की मदद करना अधर्म दान है। ऐसा दान कभी नहीं करना चाहिये। ' 8. धर्म दान : श्रेष्ठ उद्देश्यों के लिए, अहिंसा, संयम आदि मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठार्थ अपने धन का, साधनों का संविभाग करना धर्म दान है। 9. करिष्यति दान : प्रत्युपकार की आकांक्षा से किसी का उपकार करना करिष्यति दान है। 10. कृत दान : किसी के उपकार के बदले में उपकार करना कृत दान है। दस प्रकार इन दस प्रकार के दानों में कुछ स्वीकार्य और कुछ अस्वीकार्य है। कुछ प्रकार के दानों का सामाजिक आर्थिक सम्बन्धों में अलग महत्व है। जो व्यक्ति सहयोग देना नहीं जानता वह सामाजिक नहीं और जो सहयोग लेना नहीं जानता वह भी सामाजिक नहीं। समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र सहयोग और सहकारिता से संचालित है। योगी को भी सहयोगी की जरूरत पड़ती है। व्यक्ति को परोपकार करना चाहिये, उपकारी का उपकार नहीं भूलना चाहिये। आचार्य कार्तिकेय, आचार्य जिनसेन आदि ने दान के चार भेद किये हैं - आहार, औषध, ज्ञान और अभयदान / (216)