________________ आपातकाल में दान दान का मूल ध्येय है - उचित वक्त पर उचित मदद करना। कितने ही व्यक्ति व्यक्तिगत अथवा पारिवारिक तौर पर संकट में फँस जाते हैं। ऐसे संकट के उनकी सहायता करनी चाहिये। कितने ही व्यक्ति सामूहिक रूप से प्राकृतिक और अप्राकृतिक आपदाओं से घिर जाते हैं। मानवता का तकाजा है, उनकी मन से मदद की जाय। ऐसी आपदाओं के अन्तर्गत बाढ़, भूकम्प, अकाल, महामारी, दुर्घटनाएँ आदि सम्मिलित हैं। आपातकालीन दान समाज-धर्म, राष्ट्र-धर्म व मानवधर्म का अंग है। जगडूशाह वि. सं. 1312 में पड़े त्रिवर्षीय दुष्काल का सामना करने के लिए जैन श्रावक जगडूशाह ने ऐतिहासिक मदद की। उन्होंने दुष्काल की विभीषिका को भाँप लिया था और ऐसे महासंकट का सामना करने के लिए पूर्व तैयारियाँ और प्रबन्धन कर लिया था। अकाल के समय जगडूशाह ने काशी के राजा को 128 हजार मन, नवाब मोइज्जुद्दीन को 84 हजार मन, सिन्धु व स्कन्धिल देश के राजा को 48-48 हजार मन और गुजरात के अणहिलवाड़े के राजा को 32 हजार मन अन्न और खाद्य-सामग्री की मदद की। इनके अलावा 112 दानशालाएँ खुलवाईं तथा माँगने में संकोच करने वालों को करोड़ों स्वर्ण-मुद्राएँ मोदक में रखकर भिजवाईं। जगडूशाह ने यह सब बिना किसी प्रत्याशा के विशुद्ध मानवीय धरातल पर किया। अपने देश ही नहीं, दूसरे देशों को भी सहायता भिजवाई। भामाशाह महाराणा प्रताप को मेवाड़ की स्वतन्त्रता और स्वाभिमान की रक्षार्थ संसाधनों के संकट का सामना करना पड़ा। वे निराश होकर मेवाड़ छोड़कर सिंध की ओर बढ़ गये थे। ऐसी सघन निराशा में श्रावक भामाशाह (जन्म वि.सं.1604 - निधन वि.सं.1656) उनके लिए आशा का सूरज बनकर उपस्थित हुए। भामाशाह ने प्रताप को इतना धन समर्पित किया, जिससे 25 हजार सैनिकों/व्यक्तियों का 12 वर्षों तक आसानी से बिना ब्याज खर्च चल सके। उनका यह दान इतिहास में अमर हो गया। उदारमनाओं के मुक्त योगदान के बगैर भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता था। विनोबा के भूदान आन्दोलन ने भी भारतीय सामाजिक आर्थिक जीवन पर बहुत अनुकूल प्रभाव पैदा किया। (218)