________________ इक्कीस संस्कृतियों में से उन्नीस संस्कृतियों के पतन का कारण शराब है।" मद्यपान से मानव की अन्तर्शक्ति क्षीण हो जाती है। शराब से विवेक, संयम, ज्ञान, सत्य, शौच, दया आदि गुण नष्ट हो जाते हैं। आचार्य हरिभद्र ने मद्यपान के सोलह दुष्परिणाम बताये हैं।s - शरीर विद्रूप होना, शरीर विविध रोगों का आश्रयस्थल होना, परिवार से तिरस्कार होना, समय पर कार्य करने की क्षमता का नहीं रहना, अन्तर्मन में द्वेष पैदा होना, ज्ञानतन्तुओं का धुन्धला होना, स्मृति क्षीण होना, बुद्धि का भ्रष्ट होना, शक्ति का न्यून होना, सज्जनों से सम्पर्क नहीं होना, दुर्जनों से सम्पर्क बढ़ना, वाणी में कठोरता, कुलहीनता, धर्म का नाश, अर्थ का नाश और काम का नाश होना। व्यक्ति के पतन के लिए इन/इतने सारे दुर्गुणों में से कुछ ही पर्याप्त हैं। ये ही दुर्गुण समाज और देश को भी शक्तिहीन और विपन्न बनाते हैं। शराब को राजस्व का बड़ा स्रोत मानना भी भ्रम मात्र है। शराब से उत्पन्न सामाजिक, नैतिक, सांस्कृतिक विकृतियों को दूर करने या उनसे जूझने पर सरकार को जो खर्च करना पड़ता है, वह आय की तुलना में कई गुना अधिक होता है। पुलिस और चिकित्सा पर जो खर्च होता है, उसकी तो कल्पना भी नहीं की जा सकती है। महिलाओं पर अत्याचार और सड़क दुर्घटनाओं में भी शराब निमित्त बनती है। ताजा नतीजों के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष 80000 से अधिक व्यक्ति सड़क-दुर्घटनाओं में काल के ग्रास बन जाते हैं तथा 12 लाख से अधिक घायल हो जाते हैं। इन सड़कदुर्घटनाओं की वजह से देश को 55000 करोड़ रुपयों की आर्थिक हानि उठानी पड़ती है। अखबारों में आये दिन जहरीली शराब से मौतों की खबरें आती रहती हैं।" जिन समाजों में मद्य का निषेध हैं, वे समाज उन्नतिशील और उन्नत हैं। 3. पर-स्त्री गमन या पर-पुरुष गमन प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव को विवाह परम्परा और पारिवरिक व्यवस्था का सूत्रधार माना जाता है। गृहस्थ के लिए यह विधान है कि वह विधिवत् विवाहित पत्नी में सन्तोष करते हुए शेष सभी पर-नारियों के साथ मैथुनविधि का परित्याग करें। एड्स जैसी महामारी के चलते आधुनिक युग में भी वैवाहिक सीमा पार नहीं करने की हिदायतें दी जाने लगी हैं। पर-स्त्री गमन (पुरुषों के लिए) या पर-पुरुष गमन (स्त्रियों के लिए) अत्यन्त निम्न स्तर का कार्य है। इससे एक या दो व्यक्ति ही नहीं, वरन् दो या दो से अधिक परिवार तहस-नहस हो (228)