________________ 1. मांसाहार भगवान महावीर ने मांसाहार को नरक गति का कारण बताया है। उन्होंने पंचेन्द्रिय-वध को भी नरक का कारण बताया। जिसके बगैर मांस प्राप्ति असंभव है। मांसाहार पंचेन्द्रिय-वध और हिंसा का सबसे बड़ा निमित्त है। मांसाहार और पंचेन्द्रिय-वध करने वाला मर कर नरक में जायेगा तब जायेगा परन्तु स्वर्ग-तुल्य संसार में यहाँ-वहाँ नरक जैसा वातावरण तो हिंसा की वजह से बन ही रहा है। सूत्रकृतांग में हस्ती तापस और भगवान महावीर के शिष्य श्रमण आर्द्रकुमार के बीच में जो संवाद होता है, वह शाकाहार के गौरव को बढ़ाने वाला है। हाथी के एक जीव को मारकर कई दिनों तक खाने वाले हिंसा और अहिंसा, करुणा और क्रूरता का क-ख-ग भी नहीं जानते हैं। प्रश्न अल्प-बहुत्व का नहीं, चेतना के विकास और करुणा का है। इस सम्बन्ध में आचार्य महाप्रज्ञ कहते हैं - 'मांसाहार-निषेध का सबसे प्राचीन प्रमाण जैन साहित्य के अतिरिक्त किसी अन्य साहित्य में है, ऐसा अभी मुझे ज्ञात नहीं है। मूलाचार में मांस को महाविकृति कहा है तथा उसे काम, मद और हिंसा को उत्पन्न करने वाला बताया है। विपाक सूत्र में मांसाहार को बीमारियों का घर, नरक का कारण और अत्यन्त हानिकारक बताया गया है। मांसाहार मानव के लिए लाभदायक नहीं हो सकता, क्योंकि वह मानव का आहार ही नहीं है। शरीर-विज्ञान की दृष्टि से मानव मूलतः शाकाहारी प्राणी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की बुलेटिन संख्या 637 की दृष्टि से मांसाहार से 160 प्रकार के रोग हो सकते हैं, जिनमें से अनेक असाध्य और अनेक दुःसाध्य हैं। मांसाहार अपव्ययकारी है और इससे न सिर्फ वैयक्तिक, अपितु वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी दूरगामी दुष्परिणाम हो रहे हैं। 2. मद्यपान मूलाचार में मद्य को भी महाविकृति कहा है तथा उसे काम, मद, हिंसा आदि का जनक बताया है। दशवैकालिक सूत्र में मदिरापान का निषेध करते हुए कहा गया है कि वह लोलुपता, छल, कपट, झूठ, अपयश, अतृप्ति आदि दुर्गुणों को पैदा करने वाला और दोषों को बढ़ाने वाला है।" अन्तकृतदशांग के अनुसार शराब . उच्छंखलता और अपराधों की जननी है। शराब की वजह से वासुदेव श्रीकृष्ण की स्वर्णपुरी विशेषण युक्त सम्पन्न द्वारिका नगरी का भी विनाश हो गया था। विश्व इतिहासकार टॉयन्बी ने लिखा - 'अति प्राचीन काल से अस्तित्व में आईं कुल (227)