________________ व औषधियाँ ऐसी है जो छोटे-छोटे और छोटे-बड़े जीव-जन्तुओं की प्रत्यक्ष हिंसा पर आधारित हैं। ऐसे व्यापारों से परिस्थितिकी असन्तुलन पैदा होता है। सदृहस्थ को चाहिये कि वह सदैव निरापद व अहिंसक विकल्प चुनें। 12. निलंछण कर्म (निलंछणकम्मे ) : आचार्य अभयदेव ने बैल आदि पशुओं को नपुंसक बनाने के व्यापार को इस कर्मादान के अन्तर्गत माना है। जबकि आचार्य हेमचन्द्र पशुओं की नाक बींधने, डाम लगाने, कान छेदने, पीठ गालने आदि को भी इसमें मानते हैं। वर्तमान में स्त्री-पुरुष नसबन्दी का कार्य इसी कर्मादान का रूप है, जिससे मानव असंयमित जीवन जीने लगता 13. दावाग्नि दापन ( दवग्गिदावणया) : जंगल किसी भी राज्य की बहुत बड़ी सम्पत्ति होते हैं। विभिन्न प्रकार के व्यापारिक उद्देश्यों के लिए जंगलों में आग लगा दी जाती थी। इससे जंगल के साथ बहुत सारी चीजे नष्ट हो जाती थीं। वनस्पतियाँ, जीव-जन्तु और उनके नैसर्गिक आवास तथा वनवासियों व निम्न-मध्यवर्गीय व्यक्तियों के रोजगार वनों की समाप्ति के साथ ही समाप्त हो जाते हैं। 14. सरदहतलाय शोषण ( सरदहतलाय सोसणया) : चन्द लोगों के निहित स्वार्थों के लिए तालाब, झील आदि को सुखना इस कर्मादान के अन्तर्गत है। जैसे वनों को नष्ट करने से बहुत सारी चीजें नष्ट हो जाती हैं, वैसे ही जलाशयों को नष्ट करने से भी जलीय प्राणी, पर्यावरण, रोजगार आदि बहुत सारी चीजें नष्ट हो जाती हैं। 15. असतीजन पोषण (असईजणपोसणया) : देह-व्यापार के लिए स्त्रीपुरुषों की व्यवस्था करना, उनके यौन-कर्म को खरीदना, बेचना या बिकवाना आदि निम्न स्तर के कार्य इस कर्मादान के अन्तर्गत आते हैं। वर्तमान में पर्यटन और होटल-व्यवसाय की आड़ में देह-व्यापार बढ़ गया है। यह नितान्त अनुत्पादक कर्म है। हेमचन्द्राचार्य इस कर्मादान में अप्रशस्त प्रयोजनों से कुत्ते, बिल्ली आदि रखने तथा स्वतन्त्र रहने वाले पक्षियों को कैद करने को भी सम्मिलित करते हैं। ये पन्द्रह कर्मादान सद्गृहस्थ के लिए वर्जित हैं। ये वर्जनाएँ सामाज, देश, अर्थ-तन्त्र और पर्यावरण के लिए स्थायी रूप से हितकारी हैं। वर्तमान में जल, . (195)