________________ संसार में अपव्यय और निष्प्रयोजनकारी गतिविधियों में अत्यधिक इज़ाफा हुआ है। यह अपव्यय दो स्तरों पर अधिक है - सरकारी स्तर पर और धनाढ्यं लोगों में। राज्य द्वारा अर्थ-व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकारी मशीनरी पर होने वाले धन के दुरुपयोग को रोकने की कवायद की जाती है। पर स्थिति देखते हुए ऐसे प्रयास 'ऊँट के मुँह में जीरा' नजर आते हैं। जो जनता के सेवक हैं तथा राजकीय कर्मचारी हैं, उनमें यह गहरा बोध या दृढ़ संकल्प होना चाहिये कि जनता की गाढ़ी कमाई का, राजकीय सम्पत्ति का वे कभी भी, किसी भी रूप में दुरुपयोग एवं अपव्यय नहीं करेंगे। उनका यह आचरण उनके व्यक्तित्व को ऊपर उठाने के साथ-साथ राष्ट्रीय अर्थ-व्यवस्था और लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने में भी मददगार साबित होगा। __धनाढ्य व्यक्ति इस मानसिकता से ऊपर उठे कि उनके कमाये धन को वे जिस रूप में चाहे खर्च कर सकते हैं। कितने ही धनाढ्य अपार धन के बावजूद संयमित जीवन जीते हैं। सत्कार्यों में अपने धन को नियोजित करते हैं। जन सामान्य को भी चाहिये कि वह पानी, बिजली, पेट्रोल, डीजल, गैस आदि का सीमित उपयोग करें। आतिशबाजी तो बहुत बड़ा अनर्थदण्ड है। वह निष्प्रयोजन होती है, अनुत्पादक होती है और पर्यावरण को नुकसान पहुँचाती है। ___ एक किसान कई बीघा भूमि पर सिंचाई के लिए बहुत सारे पानी का उपयोग करता है, जबकि एक व्यक्ति अपने नहाने धोने और कुलर में चलने के लिए जरूरत से ज्यादा, किन्तु सिंचाई से काफी कम जल का उपयोग करता है। व्रत की दृष्टि से किसान निर्दोष और आवश्यकता से अधिक उपयोग करने वाला दोषी है। पाँच लाख की आबादी वाले शहर का प्रत्येक बाशिन्दा यदि एक दिन के लिए केवल एक लीटर पानी कम उपयोग का संकल्प करें तो सिर्फ एक दिन में पाँच लाख लीटर पानी की बचत हो सकती है। अर्थ-व्यवस्था, समाज, पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर ऐसे व्रतों और संकल्पों का जबर्दस्त सुप्रभाव होता है। अब जिन चार व्रतों का वर्णन किया जा रहा हैं, वे शिक्षाव्रत के नाम से जाने जाते हैं। पूर्व में जिन अणुव्रतों और गुणव्रतों की चर्चा की गई, वे स्थायी रूप से ग्रहण किये जाते हैं। जबकि शिक्षाव्रत, जैसा कि नाम से विदित है, प्रशिक्षण और अभ्यास के व्रत हैं। इन्हें अल्प समय के लिए ग्रहण किया जाता है। (199)