________________ 8. रस-वाणिज्य ( रसवाणिज्जे) : इसके अन्तर्गत शराब आदि मादक रसों का व्यापार आता है। मद्य के अलावा मांस, चर्बी, मधु आदि का व्यवसाय भी रसवाणिज्य के अन्तर्गत माना गया है।" आधे चिकित्सालय और कारागृह मदिरा की वजह से भरे पड़े हैं। व्यक्ति की शान्ति और समृद्धि मदिरा पी जाती है। 9. विष-वाणिज्य (विसवाणिजे) : विभिन्न प्रकार के विषों का व्यवसाय विष-वाणिज्य है। नकली दवाइयों के गोरख धन्धे को इसमें लिया जा सकता है। जिसमें आदमी दवा के नाम पर जहर बेचता है और जन-स्वास्थ्य के साथ . खिलवाड़ करता है। सभी प्रकार की प्राणघातक वस्तुओं और हथियारों के व्यापार को भी विष वाणिज्य में लिया जाता है। अहिंसा के पथ पर चलने वाला समाज और संसार का जाने-अनजाने बहुत भला करता है। 10. केश-वाणिज्य (केसवाणिजे) : शब्दार्थ की दृष्टि से केशों का व्यापार करना केश-वाणिज्य है। शृंगार-बाजार में मानव-केश एक व्यापारिक वस्तु है। निर्धन बालाएँ अपने केशों को कौड़ियों के मोल बेच देती थी। और केशों को ही नहीं, अपने सौन्दर्य और सम्मान को भी उन्हें बेचना पड़ता था। यह व्यवसाय मानवाधिकारों का हनन करता है। भगवान महावीर ने सद्गृहस्थ के लिए ऐसी वस्तुओं के क्रय-विक्रय का निषेध किया। आचार्यों ने दासदासियों व केश-युक्त प्राणियों के क्रय-विक्रय को इसमें गिना है। सम्भवतः केश और अन्य व्यापारिक लाभों की प्राप्ति के लिए मानव और प्राणियों का क्रय-विक्रय किया जाता रहा होगा। अन्य प्राणियों को तो आज भी वस्तु की तरह खुल्लम-खुल्ला खरीदा-बेचा, मारा-पीटा और नोंचा जाता है। रंग-रोगन और चित्रकारी में ऐसे ब्रशों का प्रयोग भी किया जाता है, जो सुअर, गिलहरी, नेवले आदि प्राणियों के बालों से निर्मित होते हैं। बाल प्राप्ति के लिए इन निरीह प्राणियों को असह्य यातना देते हुए मार दिया जाता है। ऐसे व्यवसाय अमानवीय होते हैं, इसलिए अन्ततः अनार्थिक होते हैं। 11. यन्त्रपीड़न कर्म (जंतपीलणकम्मे ) : व्याख्या-ग्रन्थों में घाणी, कोल्हू आदि से तिलहन से तेल निकालने तथा तेल निकालने के ऐसे यन्त्रों के धन्धे को इस कर्मादान के अन्तर्गत लिया है। शब्दार्थ में जाये तो प्राणियों को यन्त्र से पीड़ा देना और जन्तुओं को पीलना जैसे अभिप्राय प्रकट होते हैं। ऐसे धन्धे विभिन्न रूपों में समाज में देखने को मिल सकते हैं। कुछ चिकित्सा पद्धतियाँ (194)