________________ है। एक श्रावक के लिए यह विधान उसके व्रतों के अन्तर्गत ही हो जाता है। वह बल या भय पूर्वक नहीं, अपितु इच्छापूर्वक राजकीय नियमों के पालन की प्रतिज्ञा करता है। 4. कूटतुला-कूटमान : गलत माप-तौल करना इस अतिचार के अन्तर्गत आता है। सद्गृहस्थ यह संकल्प करता है कि वह जीवन व्यवहार और व्यापार में सर्वत्र ईमानदारी का परिचय देते हुए अपनी प्रतिष्ठा और व्यापार की प्रामाणिकता कायम रखेगा। पता चला है कि आजकल इलेक्ट्रोनिक तौल के काँटों में भी व्यक्ति कम तौल सेट कर देता है। जबकि ग्राहक उसे पूरा समझ कर ले लेता . . है। यह चोरी का एक प्रकार है। इससे बचना चाहिये। 5. तत्प्रतिरूपक व्यवहार : इस अतिचार के अन्तर्गत गृहस्थ को वस्तुओं में मिलावट नहीं करने का निर्देश किया गया है। मिलावटी वस्तुओं को बेचने से जन-स्वस्थ्य और सही व्यापार के साथ खिलवाड़ होता है। ऐसा व्यवहार श्रावक को नहीं करना चाहिये। दसरे और तीसरे व्रत के अतिचारों के निषेध को 'व्यवसाय के आदर्श नीति--नियम' निरुपित कर सकते हैं। 4. ब्रह्मचर्य ब्रह्मचर्य अणव्रत के अन्तर्गत सदगृहस्थ या सदगहिणी के द्वारा अपने जीवन-साथी या जीवन-संगिनी के प्रति पूर्ण निष्ठा व्यक्त की जाती है तथा अन्य समस्त स्त्रियों (पुरुषों के लिए) और पुरुषों (स्त्रियों के लिए) के प्रति विकारमुक्त सम्बन्ध का सत्संकल्प किया जाता है। यह व्रत सदाचार और सामाजिकता की नींव है। जिस समाज और राष्ट्र का चरित्र और चारित्र उज्ज्वल होता है, वह यशस्वी, अजेय और सम्पन्न होता है। बलवान, समर्थ और धनवान नागरिकों का वहाँ वास होता है। भगवान महावीर ने ब्रह्मचर्य पर बहुत बल दिया। उनकी परम्परा के सद्गृहस्थ आज भी ब्रह्मचर्य पालन का आदर्श उपस्थित करते हैं। वहाँ अपने जीवन-साथी के प्रति भी अधिकाधिक विकार-मुक्त रह कर जीवन की रचनात्मकता को बहुगुणित किया जाता है। उपासकदशांग में आनन्द श्रावक भ. महावीर से संकल्प करता है - मैं स्वपत्नी सन्तोषव्रत ग्रहण करता हूँ, मेरी शिवानन्दा नामक पत्नी के अतिरिक्त सभी प्रकार के मैथुन का त्याग करता हूँ। आवश्यक सूत्र के चौथे व्रत के अनुसार (182)