________________ किया जाना चाहिये। विज्ञों का मत है कि बेहिसाब उत्खनन और अत्यधिक मत्स्यानेट भूकम्प की वजह बनते हैं। हालांकि जैन-सूत्रों में मत्स्याखेट और अन्य महाहिंसक धन्धों को पूरी तरह निन्दित माना गया है। लेकिन हिंसा का अल्पीकरण भी अहिंसा है, इस सन्दर्भ में सारी बातों पर विचार किया जाना चाहिये। 3. तिर्यक् दिशा : इसके अन्तर्गत चारों मुख्य दिशाएँ - पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण तथा चारों विदिशाएँ - ईशान, आग्नेय, नैऋत्य और वायव्य समाविष्ट दिग्व्रत के पाँच अतिचार इस प्रकार हैं - 1. ऊँची दिशा के परिमाण का अतिक्रमण करना। . 2. नीची दिशा के परिमाण का अतिक्रमण करना। 3. तिरछी दिशा के परिमाण का अतिक्रमण करना। 4. दिशा के परिमाण का विस्मरण हो जाना। 5. एक दिशा के परिमाण को घटाकर दूसरी दिशा का परिमाण बढ़ाना। . दिग्व्रत धारण करने से मनुष्य की असीम लालसाएँ सीमित हो जाती हैं। यह व्रत संसार की अनेक आर्थिक, सामाजिक, नैतिक और राजनैतिक समस्याओं का समाधान करता है। घुसपैठ और प्रतिभा पलायन की समस्या का समाधान इस व्रत की आचार-संहिता में समाहित है। गांधीजी के स्वदेशी का मूलस्रोत दिशा-परिमाण है। महात्मा गांधी श्रीमद् राजचन्द्र की छत्रछाया में अहिंसा के सिद्धान्त को पल्लवित कर रहे थे। गांधीजी पर उनका प्रभाव था, इसलिए भ. महावीर के सूत्रों को अपनाना गांधीजी के लिए स्वभाविक था। भगवान महावीर की आचार-संहिता से तीन नियम अविर्भूत होते हैं - विकेन्द्रित अर्थनीति, विकेन्द्रित उद्योग और स्वदेशी उपनिवेशवादी मनोवृत्ति पर अंकुश लगाने में दिग्व्रत की महत्वपूर्ण भूमिका है। विश्व में लोकतन्त्र के प्रसार के साथ भोगौलिक साम्राज्यवाद के विरुद्ध कुछ माहौल बना तो आर्थिक साम्राज्यवाद फैलता जा रहा है। क्रय-विक्रय, आयात-निर्यात आदि में मुक्त व्यापार प्रणाली और उदारीकरण से विश्व में आर्थिक उपनिवेश बढ़ रहे हैं। इनके अलावा हथियारों के वैध-अवैध व्यापार और आयात (188)