________________ समुद्री मार्ग समन्दर पार व्यापार के लिए समुद्री जहाजों से यात्राएँ की जाती थीं। ये ... यात्राएँ अत्यन्त रोमांचक, साहसभरी और जोखिमों से भरी होती थी। वे असुरक्षित भी होती थीं। जलदस्युओं का भय रहता था। वे काली-पीली सफेद झण्डियों वाले, बड़ी पतवारों वाले, द्रुतगामी पोतों द्वारा आक्रमण कर व्यापारियों को लूट लेते थे 20 . समुद्री यात्रा करने वाले सार्थवाह भी होते थे। चम्पा के माकन्दी नामक सार्थवाह के पुत्रों - जिनपालित और जिनरक्षित ने ग्यारह बार समुद्री-मार्ग से यात्राएँ कीं। बारहवीं बार की उनकी समुद्री मार्ग की यात्रा में जहाज टूट गया तथा उन्हें भयंकर कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। चम्पा का ही एक पालित नामक व्यापारी जलपोत पर सवार होकर व्यापार के लिए पिहुण्ड गया था। डॉ. जगदीश चन्द्र जैन के अनुसार पिहुण्ड खारवेल शिलालेख का पिथुडग हो सकता है जो चिकाकोल और कलिंगपटम के अन्दरुनी हिस्से में स्थित था। वसुदेवहिण्डी, कुवलयमालाकहा आदि ग्रन्थों में भी समुद्री मार्गों से की जाने वाली रोमांचक व्यावसायिक यात्राओं के उल्लेख मिलते हैं। जल मार्गों की सुरक्षा के लिए राज्य की ओर से पोतवाध्यक्ष नियुक्त किया जाता था, जो मार्गों और यानों की सुरक्षा सुनिश्चित करता था। यान और वाहन मानव सभ्यता की प्रगति के मूल में एक महत्वपूर्ण आविष्कार है - पहिया या चक्र। यह गति और प्रगति का प्रतीक है। आगम युग का मानव आत्मविद्या में पारंगत था तो भौतिक प्रगति में भी पीछे नहीं था। व्यापार, व्यवसाय और अन्य कार्यों के लिए वह विविध प्रकार के वाहनों का प्रयोग करता था। ये वाहन जमीन पर चलने वाले तथा जल में चलने वाले होते थे। आकाशीय वाहनों के भी उल्लेख प्राप्त होते हैं। स्थल वाहन ___ स्थल मार्गीय वाहनों में बैल, हाथी, घोड़े, गधे, ऊँट आदि पशु बहुत काम आते थे। स्वतन्त्र रूप से माल ढोने में भी और विभिन्न प्रकार के वाहनों को खींचने में भी। रथ, शटक, बैलगाड़ी आदि वाहनों के माध्यम से माल परिवहनित होता था। नर-वाहन भी होते थे। डोली, पालकी, कावड़ और शिविका नर-वाहन के रूप हैं। पर इनका व्यावसायिक उपयोग अधिक नहीं होता था। मेघकुमार की दीक्षा के अवसर पर सौ पुरुषों द्वारा वहन की जाने वाली शिविका का उपयोग (162)