________________ 1. वर-कन्या सम्बन्धी : वर कन्या सम्बन्धी झूठ बोल कर तय किये गये रिश्ते दीर्घ समय तक नहीं टिक पाते हैं। इससे परिवार टूटता और समाज कमजोर होता है। परिणामस्वरूप व्यक्ति और समाज के आर्थिक हितों पर कुठाराघात होता है। 2. गौ आदि पशु सम्बन्धी : पशु मुख्य आर्थिक उपादान थे, इसलिए पशु सम्बन्धी झूठ का निषेध किया गया है। व्यापक अर्थों में व्यापारिक वस्तुओं और वाहनों के सम्बन्ध में भी झूठ नहीं बोला जाना चाहिये। जिससे व्यापार, व्यापारी और व्यापारिक वस्तुओं के प्रति लोक-विश्वास बना रहे। अतिरंजित और झूठे विज्ञापनों से मृषावाद का दोष लगता है। ऐसे प्रलोभनों से निम्न व मध्यवर्गीय परिवारों पर अनावश्यक आर्थिक भार पड़ता है। 3. भूमि सम्बन्धी : भूमि एक महंगा सौदा होता है। इसलिए आर्थिक जगत में भूमि के स्वामित्व और स्वत्व को लेकर बहुत साँच-झूठ और ठगाई होती है। भोले और निर्धन व्यक्ति उसमें फँस भी जाया करते हैं। व्यक्ति को भूमि सम्बन्धी झूठ नहीं बोलना चाहिये। 4. धरोहर सम्बन्धी : लाटी संहिता में इसे न्यासापहार अतिचार माना है। प्राचीन परम्परागत बैंकिंग प्रणाली में मूल्यवान धरोहर के बदले में ऋण दिया जाता था। सद्गष्हस्थ को निर्देश दिया गया है कि वह ऐसी अमानत को दबाने या परिवर्तित करने के लिए कभी झूठ का सहारा नहीं लें। 5. कट साक्षी : वाणिज्यिक गतिविधियों और न्याय-प्रणाली में गवाही का ... महत्व होता है। झूठी गवाही और छद्म साक्ष्यों से आर्थिक जगत में बड़े बड़े अपराध होते हैं। न्यायिक व्यवस्था भी उनके समक्ष दीन-हीन बन जाती है। उपरोक्त स्थूल मिथ्या-वचनों का त्याग करते हुए श्रावक को निम्न पाँच अतिचारों से बचना चाहिये - 1. सहसा अभ्याख्यान : बिना सोचे समझे किसी के लिए कुछ-का-कुछ कह देना अतिचार है। कभी किसी के लिए एकाएक गलत बात मुँह से निकल जाती है, उससे भी दोष लगता है। लेकिन दुर्भावना पूर्वक किसी के लिए अनुचित कहने से अनाचार का दोष लगता है। वचनों की दरिद्रता से जीवन ... की सम्पन्नता घट जाती है। (179)