________________ अधिकतर व्यापारिक केन्द्र इन मार्गों से दूसरे व्यापारिक केन्दों से जुड़े थे। ज्ञाताधर्मकथांगके अनुसार चम्पा से गम्भीरपत्तन (ताम्रलिप्ति) तक के सड़क मार्ग से पोतवणिक् अर्हन्नक गाड़ियाँ और शटक लेकर व्यापार के लिए गया था। एक मार्ग चम्पा से अहिच्छत्र तक जाता था। सार्थवाह धन्ना इसी मार्ग से व्यापार के लिए गया था। उत्तरापथ ___पाटलिपुत्र भी अनेक व्यापारिक मार्गों से जुड़ा था। पाटलिपुत्र से काबुल और कन्धार जाने वाले मार्ग को उत्तरापथ कहा जाता था। पाटलिपुत्र के मुरुण्ड राजा का दूत इस पथ से पुरुषपुर (पेशावर) गया था। कुवलयमालाकहा के अनुसार तक्षशिला का वणिक्पुत्र धनदेव उत्तरापथ से होता हुआ दक्षिणापथ की सोपारकमण्डी पहुँचा था। चीनी यात्री फाह्यान इसी पथ से पाटलिपुत्र पहुँचा था। पाणिनी ने उत्तरापथ को स्थल-यातायात की धमनी कहा है। इस मार्ग पर पाटलिपुत्र, वाराणसी, कौशाम्बी, साकेत, मथुरा, तक्षशिला, पुष्कलावती, कपिशा आदि प्रमुख नगर स्थित थे तथा यह मार्ग आगे वालीक तक जाता था। मथुरा उत्तरापथ का दूसरा व्यापारिक केन्द्र था। उत्तरापथ में मथुरा के साथ 96 गाँव लगे हुए थे। जल मार्ग . प्राचीन भारत की धरती पर कलकल करती अनेक सरिताएँ बहती थीं तथा वर्तमान की भाँति पुल भी नहीं थे। इससे देश का एक अलग ही भूगोल था। उसमें नदियों के पार व्यापार में विशिष्ट साहस और योग्यता की आवश्यकता थी। गंगा, यमुना, सरयू, इरावती, मही, कोसी, सिंधु, आदि नदियों के रास्ते देश-विदेश में व्यापार होता था। नदियों में प्रचुर जल उपलब्ध था और वह प्रदूषित भी नहीं था। नदी किनारे बसे नगरों का व्यापारिक दृष्टि से अत्यधिक महत्व था। नदी के एक किनारे से दूसरे किनारे तक माल और सवारियाँ ढोने वाले नाविकों का धन्धा भी अच्छा चलता था। नेपाल से आने वाली एकठा नाव में एक बार में 40 से 50 मन तक अनाज भरा जा सकता था। नदी पार करने के लिए निराश्राविणी नौका सुरक्षित मानी जाती थी। अविकसित क्षेत्रों में खाल पर बैठकर भी नदी पार की जाती थी। भरत चक्रवर्ती की दिग्विजय के अवसर पर उनका चर्मरत्न नाव में परिवर्तित हो गया था। उस पर सवार होकर उन्होंने सिन्धु नदी को पार करते हुए सिंहल, बर्बर, यवन द्वीप, अरब, एलेक्जैण्ड्रा आदि देशों की यात्रा की थी। (161)