________________ धन्य सार्थवाह उस समय चम्पा एक वाणिज्यिक नगरी थी। यह कथानक भी चम्पानगरी से सम्बन्धित है। ज्ञाताधर्मकथांग के पन्द्रहवें अध्ययन 'नन्दीफल' में इसका वर्णन. है। चम्पानगरी में धन्य सार्थवाह रहता था। एक बार उसने विक्रय के लिए माल लेकर अहिच्छता नगरी जाने का विचार किया। प्रस्थान के कुछ दिनों पूर्व उसने पूरी चम्पानगरी में घोषणा करवाई कि जो कोई व्यक्ति धन्य के सार्थ के साथ चलना चाहे, वह उसके साथ चल सकता है। साथ में चलने वालों के लिए भोजन, वस्त्र, आवास, आवश्यकता पड़ने पर चिकित्सा आदि सब व्यवस्थाएँ धन्य सार्थवाह की ओर से की जाएगी। शुभ तिथि और समय देखकर धन्य सार्थवाह अनेक लोगों के साथ व्यापार के लिए प्रस्थान करता है। पूर्व घोषणा के अनुसार प्रत्येक सहयात्री के लिए धन्य सारी व्यवस्थाएँ करता है। किसी को कोई तकलीफ नहीं होने देता है तथा नीतिपूर्वक व्यापार, व्यवसाय और धर्म की शिक्षा देता है। धन्य सभी व्यापारिक मागों को भली-भाँति जानता था। चम्पा से अहिच्छत्र के रास्ते में एक भयानक अटवी पड़ती थी। उसमें जहरीले पेड़-पौधे, फल और वनस्पतियाँ थीं। धन्य सभी यात्रियों को ऐसे वृक्षों से दूर रहने की हिदायत देता है। इस तरह पूरा सार्थ लेकर धन्य अहिच्छत्र पहुँचता है। वहाँ के राजा कनककेतु से भेंट कर उन्हें बहुमूल्य उपहार देता है। राजा ने धन्य को व्यापार करने की अनुमति दे दी और कर माफ कर दिये। सभी लोगों ने अपनी अपनी योग्यता के अनुसार व्यापार किया और यथासमय पुनः चम्पा लौटे। आर्थिक जीवन की दृष्टि से यह कथानक बहुत ही महत्वशाली है। इससे निम्न आर्थिक बिन्दु स्पष्ट होते हैं - 1. सार्थवाह की प्रभावशीलता और उदारता का दिग्दर्शन। 2. व्यवसाय का उद्देश्य केवल लाभ ही नहीं वरन् समाज-सेवा और देश की उन्नति भी है। 3. धन्य का सार्थ मानवीय एकता का जीवन्त समूह है। वह बिना किसी भेदभाव के समाज के हर वर्ग, धर्म, जाति और स्तर के व्यक्ति को अपने सार्थ में सम्मिलित करता है। व्यवसाय के माध्यम से सामाजिक समता और सौहार्द्र का यह अनूठा कथानक है। 4. कठिन यात्रा-पथ का वर्णन। 5. राजकीय सम्पर्को से व्यापार सुगम बना लेना और कर-मुक्ति का लाभ प्राप्त करना। (168)