________________ जहाज के लिए पोत, पोतवहन, वहन, प्रवहण आदि नाम मिलते हैं तथा ये काष्ठनिर्मित होते थे। ये झील और समुद्र दोनों में चलने वाले अलग-अलग प्रकार के होते थे। जो समुद्र में नहीं चलने वाले होते उनमें पतवार, रज्जु, डण्डे आदि होते जबकि समुद्री जलपोतों में कपड़ों के पाल अतिरिक्त रूप से लगे रहते थे। जलयानों से लम्बी दूरी की दीर्घ यात्राएँ की जाती थी। इसलिए उन्हें संचालित करने वाले विशेषज्ञ व्यक्तियों का दल (स्टाफ) भी साथ रहता था, जिनकी अलग-अलग जिम्मेदारियाँ होती थीं। ज्ञाताधर्मकथांग के अनुसार यान के अग्र भाग में देवमूर्ति, पिछले भाग में नियामक या निर्यामक (निजामय), मध्य भाग में गर्भज (छोटा-बड़ा काम करने वाले) तथा पार्श्व भाग में चालक कुक्षिधर होते थे। वायुयान ___ राजप्रश्नीय सूत्र में विमान और देवयान का उल्लेख मिलता है। व्यावसायिक उद्देश्यों से इन यानों के उपयोग का कोई विवरण नहीं मिलता है। जैन कथा साहित्य में विद्याधरों और लब्धिधारियों द्वारा आकाश मार्ग से गमन के उल्लेखों में कोई आर्थिक प्रयोजन दृष्टिगोचर नहीं होता है। जैन साहित्य का बृहद् इतिहास (भाग5)47 के अनुसार प्राचीन भारत में विकसित विमान विद्या थी। विमान बनाने और वायु मार्ग से उसे संचालित करने की वैज्ञानिक विधि, तकनीक और कौशल की जानकारी भी प्राचीन भारत में थी। विमान विद्या से आर्थिक गतिविधियों की पूरी श्रृंखला जुड़ी थी। महाराज भोज के काल में विमान उड़ते थे और राजा-महाराजाओं के पास निजी विमान होते थे। कबूतर डाकिये का दायित्व वायु मार्ग से ही निभाते थे। कमाई के लिए परदेश गये प्रिय को सन्देश भिजवाने, राजकीय सन्देशों के सम्प्रेषण आदि में कपोतों की महत्वपूर्ण योगदान रहा है। मोटे तौर पर गैर-आर्थिक कार्यों से भी आर्थिक प्रयोजन जुड़े रहते थे। आर्थिक पक्ष से जुड़े कुछ चरित्र पूर्व में बताया गया कि आर्यरक्षित ने जैन आगम साहित्य को चार अनुयोगों में वर्गीकृत किया गया है - चरणकरणानुयोग, धर्मकथानुयोग, गणितानुयोग और द्रव्यानुयोग। चरणकरणानुयोग में आचार का विशेष प्रतिपादन है। धर्मकथानुयोग में दृष्टान्त, कथा, चरित्र आदि का वर्णन है। गणितानुयोग में अर्थशास्त्र सहित सभी विषयों की गणित सम्बन्धी जानकारियाँ समाहित रहती हैं। द्रव्यानुयोग में तत्व और दर्शन सम्बन्धी विषयों का समावेश रहता है। आर्थिक पक्ष मुख्य रूप से (164)