________________ (ईरान) के साथ भारत के व्यापारिक सम्बन्ध थे और वहाँ से सोना, चाँदी, मोती, मूंगे, मंजीठ आदि का आयात किया जाता था।' व्यापारिक मार्ग आज जैसी पक्की डामर की सड़कों का निर्माण उस समय हुआ हो, ऐसा उल्लेख प्राप्त नहीं होता है। परन्तु आवागमन के लिए सुव्यवस्थित मार्ग प्राचीन समय में थे। व्यापार और इन व्यापार-पथों के माध्यम से देश ही नहीं, पूरा महाद्वीप और समुद्री-मार्ग भी जोड़ दिये जाये तो पूरी दुनिया से वस्तुओं और विचारों का आदान-प्रदान होता था। आज से पच्चीस-छब्बीस शताब्दियों पूर्व, जब वैज्ञानिक यन्त्र और मशीनें नहीं थी, जिन आधारभूत सुविधाओं (इन्फ्रास्ट्रक्चर) का वर्णन हमें मिलता है, वह मानव के पुरुषार्थ का बड़ा प्रमाण है। जैन आगम ग्रन्थों में स्थल, जल और सामुद्रिक मार्गों के उल्लेख प्राप्त हैं। . स्थल मार्ग व्यापारिक स्थल मार्ग बीहड़ वन-प्रदेशों और जोखिमों से भरे होते थे। : जंगली जानवरों, जीव-जन्तुओं, लुटेरों और चोरों का भय बना रहता था। व्यख्याप्रज्ञप्ति में कम यातायात वाले मार्ग को पथ और अधिक यातायात वाले मार्ग को महापथ कहा गया है। तिराहों (शृंगाटक), चौराहों (चतुष्क) के अलावा प्रवह' (जहाँ छ: रास्ते मिलते हो) भी होते थे।" नगर और नगर-मार्गों की स्वच्छता और सुरक्षा के लिए राज्य की ओर से नगरगुप्तिक नियुक्त होते थे। उनके द्वारा मार्गों की देखभाल की जाती थी और सड़कों की मरम्मत की जाती थी। सड़कों के रखरखाव के लिए राज्य की ओर से पथ-कर (वर्तनी) भी वसूला जाता था। देशान्तर गमन करने वालों को राज्य की ओर से अनुमति प्राप्त करनी पड़ती थी। इससे अवैध व्यापार और घुसपैठ रोकी जा सकती थी। अच्छी सड़कों से राज्य की समृद्धि जुड़ी होती थी। मार्ग सुरक्षित रहे, इसके लिए राज्य की ओर से सुरक्षाकर्मी भी नियुक्त किये जाते थे। उन्हें 'गौल्मिक' कहा जाता था। आवश्यकता के अनुसार मार्गों का निर्माण किया जाता था। राजमार्ग, द्रोणमुख तथा व्यापारिक मण्डियों को जाने वाले रास्ते आठ दण्ड चौड़े, तालाब और वन की ओर जाने वाले चार दण्ड चौड़े, हाथियों के चलने और खेत जाने वाले दो दण्ड चौड़े, रथों के लिए पाँच रत्न (दो रत्नमाप को एक गज के बराबर माना जाता था), पशुओं के लिए चार रत्न तथा मानव और छोटे पशुओं के लिए दो रत्न चौड़े मार्ग निर्मित किये जाते थे। (160)